अनाविर्भूत
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया1 Jun 2020 (अंक: 157, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
सुनो!
कुछ महसूस करो
तुम...
मैं एक अहसास हूँ
तुम्हारे आसपास हूँ
तुम्हारे दिल को
तुम्हारी ख़ुशियों से
भर जाऊँगा...
बदले में कुछ लूँगा नहीं
अगर ये आहट तुमने
नहीं सुनी तो...
तो मेरा क्या है?
मैं समय हूँ...
ठहर सकता नहीं
एक दिन समय के साथ
मैं गुज़र जाऊँगा।
रह जायेंगी
कुछ यादें...
स्मृतियों के
पटल पर...
कुछ बिखरे हुए
और...
धुँधले हुए
अहसास!
जो तुम्हें देंगे
एक पल के लिए
असीम आनंद की
अनुभूति...
और...
और भी...
बहुत कुछ...
अनकहा...
अनाविर्भूत...!
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