देहरी
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
यह देहरी,
सिर्फ़ घर की सीमा नहीं,
यह वो बिंदु है,
जहाँ से जीवन का हर पल,
हमारी आंतरिक यात्रा को आकार देता है।
हर क़दम, हर श्वास,
यहीं से निकलता है।
यहीं से शुरू होती है वह यात्रा,
जो हमें अपने अस्तित्व की तलाश में ले जाती है।
नन्हे क़दमों से जो कभी गूँजता था,
वह अब उस देहरी पर खड़ा,
सोचता है—
क्या मैंने सच में अपना रास्ता खोज लिया है?
क्या मैं उस सत्य तक पहुँच सका हूँ,
जो भीतर था, बाहर से छिपा हुआ?
यह देहरी कोई अंतर नहीं,
सिर्फ़ एक प्रतीक है—
हमारे भीतर की यात्रा का,
जहाँ हम ख़ुद को तलाशते हैं,
और एक दिन,
उस ठंडी, शान्ति से भरी देहरी के पार,
सभी उत्तर मिल जाते हैं।
यह देहरी न केवल एक सीमा है,
यह एक समझ है—
समझ, जो हमें अपनी यात्रा से मिलती है।
जब दुनिया के शोर में
हम खड़े होते हैं इस देहरी पर,
तो हमें एहसास होता है कि
हर चीज़ को छोड़कर
सिर्फ़ एक ही चीज़ मायने रखती है—
आत्मा की शान्ति।
यह देहरी,
जिसे हम अक्सर पार करने का सोचते हैं,
असल में हमसे कहती है—
“रुको, भीतर की यात्रा को महसूस करो,
आत्मा की गहराई में उतरकर,
सत्य को पहचानो।”
हर देहरी,
हर संधि स्थल,
सिर्फ़ एक द्वार नहीं,
एक मार्ग है—
संसार और आत्मा का मिलन,
जो हमें हर बार
नई दृष्टि देता है,
नई समझ,
नई दिशा।
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