दिया (अमरेश सिंह भदौरिया)
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया1 May 2020 (अंक: 155, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
संघर्षों में जीवन उसका
हरपल ही ढलता रहा
दिया रात में जलता रहा
दिया रात में जलता रहा
1.
रोशनी के रोज़गार में
रोज़ सूखती बाती
हल्की हवा के झोंके से
लौ भी हिलडुल जाती
ख़्वाब अँधेरों से लड़ने का
सपनों में पलता रहा
दिया रात में जलता रहा
दिया रात में जलता रहा
2.
काली-काली रातों के
क़िस्से काले-काले
अभाव के हिस्से में
कब आते यहाँ उजाले
समय का हर पासा उसकी
क़िस्मत को छलता रहा
दिया रात में जलता रहा
दिया रात में जलता रहा
3.
चाँदनी की किरणें भी
बस मुँडेर तक आती
समता के आँगन में वह
भेद भाव फैलाती
खोटी बात है वर्गभेद तो
ये सिक्का क्यों चलता रहा
दिया रात में जलता रहा
दिया रात में जलता रहा
4.
अगर हमारी और तुम्हारी
होती सोच सयानी
प्रेमचंद फिर कभी नहीं
लिखते गोदान कहानी
बोतल रही पुरानी "अमरेश"
लेबल ही बदलता रहा
दिया रात में जलता रहा
दिया रात में जलता रहा
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