शाम ढले मधुशाला
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता अमरेश सिंह भदौरिया15 Jun 2020 (अंक: 158, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
सुबह-सुबह मंदिर में दर्शन
शाम ढले मधुशाला,
तन-से बगुला वरन बने
मन-कौवे-से भी काला,
आदर्शों में पूज रहे
गाँधी जी की तस्वीरें
मौक़ा मिलने पर करते,
घोटाले में घोटाला,
हमको भी अपना कहते
तुमको भी अपना कहते,
सबसे जोड़ रहे हैं रिश्ता
रोटी-बोटी वाला,
गाँव-गाँव में गली-गली में
घर-घर जाकर कहते,
मैंने भी हाथो में थामी
लोकतंत्र की माला,
सपथ-सत्य की खाते
लेकर मन-में सेवा भाव,
अपनी हर चालों में चलते
पाशा-शकुनी वाला,
अपने चारों ओर लगे हैं
प्रहरी वर्दी-वाले,
पर ख़ुद को कहते
मैं हूँ तेरा-रखवाला,
मौसम का अनुमान लगाते
वो पुरवाई के रुख़ पर,
सपनों की फूली फुलवारी में
"अमरेश" गिरा कब पाला।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
कविता
लघुकथा
कहानी
कविता-मुक्तक
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं