भाग्य रेखा
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया15 Jun 2025 (अंक: 279, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
हथेली पर खिंची वह सूक्ष्म रेखा
जिसे मनुष्य ने "भाग्य" कहा,
क्या वास्तव में वह नियति का प्रारूप है
या केवल अज्ञात का एक अनुमान?
रेखाएँ जन्म लेती हैं
एक ऐसे समय में
जब चेतना शून्य होती है,
और फिर,
वय का बढ़ना, अनुभवों का उतरना,
उन्हें अर्थ देने लगता है।
मनुष्य,
जिसे मिला है विवेक, विचार और विकल्प,
क्या उसे उचित है
इन मौन रेखाओं को अंतिम सत्य मान लेना?
भाग्य रेखा
कभी स्पष्ट दिखती है,
तो कभी धुँधली,
जैसे ईश्वर भी अनिर्णय में हो
कि इसे आशीर्वाद दूँ या परीक्षा।
पर वही मनुष्य,
जिसने इतिहास रचा, सभ्यताएँ गढ़ीं,
समुद्रों को चीर मार्ग बनाए,
क्या वह हथेली में बँधा रह सकता है?
जो चलता है
वह रेखाएँ नहीं देखता —
वह रचता है नई दिशा,
जहाँ निर्णय, कर्म और निष्ठा
रेखाओं से अधिक प्रबल होते हैं।
रेखाएँ स्थिर होती हैं,
कर्म गतिशील।
और गति ही है जो
किसी भी पूर्वनिर्धारित रूपरेखा को
पुनः आकार दे सकती है।
इसलिए,
जब भी हथेली देखो —
उसमें भविष्य नहीं,
स्वयं की क्षमता पहचानो।
क्योंकि भाग्य रेखा वही है
जिसे तुम अपनी दृष्टि से
नई आकृति देते हो।
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