अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

उद्धव की वापसी–आधुनिक समय में चेतना की पुकार

 

1.  प्रस्तावना: पुराण से वर्तमान तक

भारतीय चिंतन परंपरा में पुराणों को केवल मिथक मानना एक भूल होगी। वे प्रतीक हैं—समय, चेतना, संस्कृति और आत्मा के गहरे संवाद के। ऐसे ही एक संवाद का वाहक है ‘उद्धव प्रसंग’—जहाँ ज्ञान, प्रेम के सम्मुख सिर झुकाता है। 

यह प्रसंग केवल द्वापर युग की कथा नहीं, आज के युग की आत्मा का दर्पण है। उद्धव कोई व्यक्ति नहीं, वह मानव की बौद्धिक पराकाष्ठा का प्रतिनिधि है। और ब्रज की गोपियाँ केवल चरित्र नहीं, वे आत्मीयता, प्रेम और करुणा की जीवित प्रतिमाएँ हैं। 

2. उद्धव: तर्क, योग और अहं का प्रतीक

उद्धव कृष्ण के अत्यंत प्रिय सखा और शिष्य हैं। वे योगी हैं, शास्त्रों में निष्णात हैं, व्यवहार में नीतिज्ञ और जीवन में संयमी। वे आधुनिक ‘तार्किक मनुष्य’ की छवि हैं—जो संसार को तर्क से परखता है, अनुभव से नहीं। 

जब उन्हें कृष्ण आदेश देते हैं कि “ब्रज जाओ और गोपियों को ज्ञान दो”, तब वे गर्व से भर उठते हैं। उन्हें लगता है कि भावनाओं में उलझे इन ग्राम्य लोगों को तर्क और वैराग्य का उपदेश देना ही धर्म है। 

3. ब्रज: जहाँ प्रेम तर्क से आगे निकल जाता है

ब्रज में पहुँचते ही उद्धव की ज्ञान-धारा गोपियों की आँखों के आँसुओं में बह जाती है। वे उन स्त्रियों को देखकर चकित हैं, जो अपने आराध्य के विरह में अपनी चेतना तक खो चुकी हैं, फिर भी उनके पास कोई शिकायत नहीं, केवल प्रतीक्षा है। 

यहाँ उद्धव को समझ आता है कि प्रेम केवल मनोविकार नहीं, वह आत्मा का परिष्कृत स्तर है। 

गोपियों के भाव उस युक्ति से नहीं चलते जिस पर शास्त्र आधारित होते हैं, वे अनुभव और समर्पण की उस परिधि में रहते हैं, जहाँ शब्द भी मौन हो जाते हैं। 

4. समकालीन समाज में ‘उद्धव’ की वापसी

आज का मनुष्य आधुनिक उद्धव है। हमने विकास के नाम पर हर चीज़ को ‘मापने’ की आदत बना ली है—संबंधों को, जीवन को, यहाँ तक कि भावनाओं को भी। 

हमारे पास स्मार्टफोन हैं, लेकिन संवाद नहीं। हम सोशल मीडिया से जुड़े हैं, पर आत्मा से कटे हैं। 

विज्ञान, टेक्नॉलोजी और तर्क ने जीवन को आसान तो किया है, पर क्या वह सार्थक भी हुआ है? 

कोरोना महामारी, मानसिक स्वास्थ्य संकट, परिवारों का विघटन, और अकेलेपन का प्रसार इस बात के प्रमाण हैं कि हमने केवल ‘बाहर’ को व्यवस्थित किया है, ‘भीतर’ को नहीं। 

5. ज्ञान का अहं और भावना की विनम्रता

उद्धव के ब्रज लौटने का अनुभव यह सिखाता है कि ज्ञान जब अहं बन जाए, तो वह विनाश की ओर ले जाता है, और जब भावना विनम्र हो, तो वह मोक्ष का द्वार खोलती है। 

आज शिक्षा प्रणाली, सामाजिक मीडिया विमर्श, यहाँ तक कि धार्मिक प्रवचन तक ‘प्रदर्शन’ बन गए हैं। वहाँ आत्मा कम, बुद्धि की नुमाइश अधिक होती है। 

‘उद्धव की वापसी’ आज के बुद्धिजीवी समाज से यह आग्रह करती है कि वह विनम्रता के साथ जिज्ञासा को स्वीकार करे और ‘अनुभव की साधना’ को भी महत्त्व दे। 

6. ब्रज की ओर लौटना: एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण

ब्रज केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, वह मानव-चेतना की वह अवस्था है, जहाँ जीवन प्रेम के धरातल पर स्थित होता है। 

वहाँ न लाभ की चिंता है, न सिद्धांतों की सीमा—वहाँ केवल वह भाव है जो व्यक्ति को स्वयं से जोड़ता है। 

जब आज का युवा तकनीकी शिखर पर खड़ा होकर भी आत्महत्या कर रहा है, तब ‘ब्रज की चेतना’ की अत्यंत आवश्यकता है। 

हमें फिर से संवेदना की संस्कृति की ओर लौटना होगा। एक ऐसी संस्कृति, जहाँ रिश्ते मूल्य होते हैं, साधन नहीं। 

7. निष्कर्ष: वापसी एक चेतावनी भी है, और अवसर भी

उद्धव की वापसी केवल एक कथा नहीं, वह समाज और व्यक्ति के आत्मपुनर्मूल्यांकन की चेतावनी है। 

यह एक दर्पण है, जिसमें आज का मनुष्य अपने ज्ञानमय अहंकार को देख सकता है और उसे प्रेममय विनम्रता में बदल सकता है। 

आज जब दुनिया वैश्विक शक्तियों के संघर्ष, आर्थिक असमानता और आत्महीनता के दौर से गुज़र रही है, तब उद्धव का अनुभव हमें वह राह दिखा सकता है, जहाँ हम प्रगति के साथ मानवता को भी साध सकें। 

उद्धव लौटे हैं . . . 

शायद किसी विश्वविद्यालय से नहीं, 
किसी वृद्धाश्रम की एकान्तता से, 
या किसी उदास युवा की खोई दृष्टि से . . . 

वे लौटे हैं यह बताने कि

जीवन को समझने के लिए कभी-कभी तर्क नहीं, केवल एक हृदय चाहिए। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

25 वर्ष के अंतराल में एक और परिवर्तन
|

दोस्तो, जो बात मैं यहाँ कहने का प्रयास करने…

अच्छाई
|

  आम तौर पर हम किसी व्यक्ति में, वस्तु…

अज्ञान 
|

  चर्चा अज्ञान की करते हैं। दुनिया…

अनकहे शब्द
|

  अच्छे से अच्छे की कल्पना हर कोई करता…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

सामाजिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

सांस्कृतिक आलेख

साहित्यिक आलेख

कहानी

लघुकथा

चिन्तन

सांस्कृतिक कथा

ऐतिहासिक

ललित निबन्ध

शोध निबन्ध

ललित कला

पुस्तक समीक्षा

कविता-मुक्तक

हास्य-व्यंग्य कविता

गीत-नवगीत

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं