कोहरा
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया1 Mar 2019
कोहरा बहुत घना है।
कोहरा बहुत घना है।
1.
दूर हुयी सूरज से लाली,
रश्मियों ने ख़ामोशी पाली,
सर्द हुयी मौसम की रातें,
घोसलें में पंछी घबराते,
जाड़े की ऋतुओं में दिन,
रातों का पर्याय बना है।
कोहरा बहुत घना है।
कोहरा बहुत घना है।
2.
कुहासे में छिप गयीं बस्तियाँ,
काँपती ठिठुरन में अस्थियाँ,
सिकुड़न आयी अंतड़ियों में,
अलाव जलते झोपड़ियों में,
झंझानिल आघात सहने को,
परदा द्वार तना है।
कोहरा बहुत घना है।
कोहरा बहुत घना है।
3.
जीविका की टूटी आशाएँ,
ढकी धुँध में सभी दिशाएँ,
भूख से बच्चे व्याकुल होते,
रोटी के सवाल पर रोते,
अभाव के संग जीवन जीना,
समाज में अभिशाप बना है।
कोहरा बहुत घना है।
कोहरा बहुत घना है।
4.
खाई ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती,
चौड़ाई भी रूप बढ़ाती,
निर्बल साँसों का क़हर जो टूटा,
समझो ज्वालामुखी है फूटा,
जब-जब भड़की है चिनगारी।
रूप उसका अंगार बना है।
कोहरा बहुत घना है।
कोहरा बहुत घना है।
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