पारदर्शी सच
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया15 Oct 2025 (अंक: 286, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
डॉक्टर की मेज़ पर
दो रिपोर्ट रखी हैं—
पहली
एक आम आदमी की है,
जिसके सीने में
पसरी हुई है
अभाव की धुँधली छाया,
पेट की हड्डियों के बीच
स्पष्ट दिखती है
भुखमरी की ख़ाली जगह,
रक्त-नलिकाओं में
तनाव की रेखाएँ फैली हुई,
और रीढ़ की हड्डी के पास
कुंठा और बेबसी
जमा होकर
पत्थर बन गई है।
दूसरी रिपोर्ट—
एक राजनेता की है।
उसकी हड्डियों में
भ्रष्टाचार की चमक साफ़ है,
फेफड़ों में
कुछ अधूरी सड़कें धड़कती हैं,
पसलियों के बीच
अटक गए हैं
कुछ अधबने पुल,
और यकृत में छिपा पड़ा है
काला धन—
प्रचुर मात्रा में,
इतना कि
एक और एक्स-रे मशीन
लगानी पड़ जाए।
दोनों रिपोर्टें
सिर्फ़ शरीर की तस्वीर नहीं,
पूरे समाज की धड़कन खोल देती हैं—
जहाँ आम आदमी
अभाव और भूख से खोखला हो रहा है,
वहीं राजनेता
अपने अपराधों और भ्रष्टाचार की गाँठों में
और मज़बूत,
और स्वस्थ दिखाई देता है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अधनंगे चरवाहे
- अधूरा सच
- अनंत पथ
- अनाविर्भूत
- अभिशप्त अहिल्या
- अमरबेल
- अमलतास
- अवसरवादी
- अहिल्या का प्रतिवाद
- अख़बार वाला
- आँखें मेरी आज सजल हैं
- आँगन
- आँगन की तुलसी
- आज की यशोधरा
- आज वाल्मीकि की याद आई
- आरक्षण की बैसाखी
- आस्तीन के साँप
- आख़िर क्यों
- इक्कीसवीं सदी
- उपग्रह
- उपग्रह
- एकाकी परिवार
- कचनार
- कछुआ धर्म
- कमरबंद
- कुरुक्षेत्र
- कैक्टस
- कोहरा
- क्यों
- खलिहान
- गाँव - पहले वाली बात
- गिरगिट
- चित्र बोलते हैं
- चुप रहो
- चुभते हुए प्रश्न
- चूड़ियाँ
- चैत दुपहरी
- चौथापन
- जब नियति परीक्षा लेती है
- ज्वालामुखी
- ढलती शाम
- तितलियाँ
- दहलीज़
- दिया (अमरेश सिंह भदौरिया)
- दीपक
- दृष्टिकोण जीवन का अंतिम पाठ
- देह का भूगोल
- देहरी
- दो जून की रोटी
- धरती की पीठ पर
- धोबी घाट
- नदी सदा बहती रही
- नयी पीढ़ी
- नेपथ्य में
- पगडंडी पर कबीर
- परिधि और त्रिभुज
- पहली क्रांति
- पहाड़ बुलाते हैं
- पाखंड
- पारदर्शी सच
- पीड़ा को नित सन्दर्भ नए मिलते हैं
- पुत्र प्रेम
- पुष्प वाटिका
- पूर्वजों की थाती
- प्रभाती
- प्रेम की चुप्पी
- फुहार
- बंजर ज़मीन
- बंजारा
- बबूल
- बवंडर
- बिखरे मोती
- बुनियाद
- भगीरथ संकल्प
- भाग्य रेखा
- भावनाओं का बंजरपन
- भुइयाँ भवानी
- मन मरुस्थल
- मनीप्लांट
- महावर
- माँ
- मुक्तिपथ
- मुखौटे
- मैं भला नहीं
- योग्यता का वनवास
- रहट
- रातरानी
- लेबर चौराहा
- शक्ति का जागरण
- शस्य-श्यामला भारत-भूमि
- शान्तिदूत
- सँकरी गली
- संयम और साहस का पर्व
- सकठू की दीवाली
- सती अनसूया
- सरिता
- सावन में सूनी साँझ
- हरसिंगार
- हल चलाता बुद्ध
- ज़ख़्म जब राग बनते हैं
सामाजिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सांस्कृतिक आलेख
- कृतज्ञता का पर्व पितृपक्ष
- कृष्ण का लोकरंजक रूप
- चैत्र नवरात्रि: आत्मशक्ति की साधना और अस्तित्व का नवजागरण
- जगन्नाथ रथ यात्रा: आस्था, एकता और अध्यात्म का महापर्व
- न्याय और अन्याय के बीच
- बलराम जयंती परंपरा के हल और आस्था के बीज
- बुद्ध पूर्णिमा: शून्य और करुणा का संगम
- योगेश्वर श्रीकृष्ण अवतरणाष्टमी
- रामनवमी: मर्यादा, धर्म और आत्मबोध का पर्व
- लोक आस्था का पर्व: वट सावित्री पूजन
- विजयदशमी—राम और रावण का द्वंद्व, भारतीय संस्कृति का संवाद
- विश्व योग दिवस: शरीर, मन और आत्मा का उत्सव
- श्राद्ध . . . कृतज्ञता और आशीर्वाद का सेतु
साहित्यिक आलेख
कहानी
लघुकथा
चिन्तन
सांस्कृतिक कथा
ऐतिहासिक
ललित निबन्ध
शोध निबन्ध
ललित कला
पुस्तक समीक्षा
कविता-मुक्तक
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं