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अमरेश सिंह भदौरिया - मुक्तक - 006

1.
शबनमी होंठों का अहसास ग़ज़ल है।
प्रीति और प्रेम का आभास ग़ज़ल है।
महलों में रही जो अधिकार की तरह,
आज भाईचारे का  विश्वास ग़ज़ल है।
2.
माँ  बोली  मीठी  भाषा   हमारी  है  हिंदी।
तुलसी, कबीर, रसखान  दुलारी है  हिंदी।
हो तुम्हें प्यार   किसी और भाषा से मगर,
"अमरेश" हमें  प्राणों  से प्यारी  है  हिंदी।
3.
भूख   से  व्याकुल   परिंदे  बैठे  हैं डाल में।
बहेलिये  ने दानें बिखेरे हैं मतलबी जाल में।
पापी पेट के लिए संघर्ष दोनों ओर जारी है,
राम  जाने सुलझेगा  ये  प्रश्न किस हाल में।
4.
नज़दीकियाँ  हों  साथ ही फ़ासला ज़िंदा रहे।
आदमी का आदमी से यहाँ वास्ता ज़िंदा रहे।
नेह का  दरपन  न टूटे किसी  समयाघात से,
मानवी सभ्यता का ये  फ़लसफ़ा  ज़िंदा रहे।
5.
जोड़ घटाव  चला  करता है जहाँ निवालों का।
स्वयं  ढूँढ़ना  पड़ता  उत्तर  सभी  सवालों का।
परछाई भी गुम  हो  जाती है अँधेरे  में आकर,
सबको साथ कहाँ मिलता है सदा उजालों का।
6.
मेरी  शायरी   का   इतना तो  असर  रखता है।
ग़ैर    होकर  भी   वो   मेरी   ख़बर  रखता है।
कामयाबी  'अमरेश'  उसकी  यहाँ  निश्चित है,
लक्ष्य पर अपने जो अर्जुन-सी नज़र रखता है।
7.
आपका   हँसना  अलग  और   मुस्कराना  है अलग।
चुपके-चुपके इस  तरह  से  दिल  में आना है अलग।
आपकी  जब  याद  आयी   सब  ख़्वाब मीठे हो गए,
दिल्लगी लगी तो अलग थी अब दिल लगाना है अलग।
8.
सफ़र  सुहाना  अगर  चाहिए  तो  पूरी तैयारी रख।
थोड़ी सी चालाकी रख  और थोड़ी होशियारी रख।
दुनियावी रिश्तों की फ़ितरत समझ नही यूँ आएगी,
दुनिया में  रहना  ही  है  तो  थोड़ी दुनियादारी रख।
9.
जब हृदय बोझिल  हुआ आँखें सजल हो गई।
मुस्कराये लफ़्ज़ तो फिर  ताज़ा ग़ज़ल हो गई।
किसी को ख़ुशियाँ   मिली  कोई   हुआ गमज़दा,
कोई डूबा सोच में और किसी से पहल हो गई।
10.
दिन  घटते  गये  उम्र  बढ़ती  गई।
ज़िंदगी  इस तरह  से  कटती गई।
नित नए स्वप्न पलकों में आते रहे,
समय की धूल उन पर चढ़ती गई।
11.
हम न होते   तुम न  होते  और  न शिकवे गिले।
तो कहो किस काम के  दुनिया में होते फ़ासले।
इस क़दर उलझा न होता ज़िंदगी का फ़लसफ़ा,
नज़दीकियाँ भी  अगर दिल  में बनाती  मरहले।
12.
मुठ्ठी   में   रही  जिसकी  यहाँ   सारी  क़ायनात।
रुख़सत हुआ सिकंदर भी दुनिया से ख़ाली हाथ।
शोहरत  की  बुलंदी  का  फिर  कैसा  गुमां प्यारे,
हिस्से  में  सभी  के जब  यहाँ रहनी है वही बात।
13.
स्वप्न हमारे तुमसे मिलने रात में आयेंगे।
निंदियारे नयनों की  कोरों  में  समायेंगे।
दिल की दहलीज़ पर इक दस्तक होगी,
सुन लेना तुम,  भाग  हमारे जग जायेंगे।
14.
सज धज  कर  वो  रहती है बाज़ार की तरह।
ख़ुशियाँ है जिसके हिस्से में त्योहार की तरह।
बेसब्री  से  जिसका मैं  रोज़ करता हूँ इंतज़ार,
बस आती नज़र वो मुझको रविवार की तरह।
15.
शाम ढलने  लगी  है चले  आइये।
दर्दे दिल है न यूँ और तड़पाइये।
बिन तुम्हारे अधूरी-सी है  ज़िंदगी,
समझदार हो ख़ुद  समझ जाइये।

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