अख़बार वाला
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया15 Mar 2022 (अंक: 201, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
सर्दियों की सुबह
घना कोहरा
कँपकँपाती ठण्ड
एक पुरानी साइकिल
जिसमें टँगा है एक थैला
उस थैले में है . . .
ज़िम्मेदारियों का बोझ
परिस्थितियों की जकड़न
जीने की उत्कट चाह
कामनाओं की विवशता
रिश्तों की मधुरता
पापी पेट की आग
मासूमों की ख़्वाहिश
नौनिहालों का उन्मुक्त बचपन
पथराई आँखों के सपने
दाम्पत्य के शुष्क अहसास
सम्बन्धों की संजीवनी
थोड़े-से अरमान
पस्त हौसला
अन्तहीन संघर्ष
घर वापस जाने की विवशता
और . . . . . .
सुबह के बचे हुए अख़बार
जो बिकने से रह गए
जिसमें छपी हैं
दुनिया भर की ख़बरें
पर अफ़सोस
पारदर्शी मीडिया की नज़र में
उसका अपना कहीं नाम नहीं है।
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Sarojini Pandey 2022/03/14 07:18 PM
कविता अच्छी है। यह कविता आप साहित्य कुंज के व्हट्सएप पटल पर भेज भी चुके हैं। 'बहुप्रतीक्षित 'विशेषण का कारण समझाने का कष्ट करेंगे।