हमारे बुज़ुर्ग
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत अमरेश सिंह भदौरिया15 Aug 2019
सीख बुज़ुर्गों की तुम भी
जीवन में आज़माना।
हरदम उनकी बात रही है
सच्ची सोलह आना।
1.
भारी मेहनत करने पर
जब तुमको लगे थकन।
पसीने की बूदों से तर
हो जाय तुम्हारा तन।
बूढ़े बरगद की छाया में
तुम पल दो पल सो जाना।
हरदम उनकी बात रही है
सच्ची सोलह आना।
2.
मौसम की नियति समझने में
उनको हासिल थी चतुराई।
भाँप लेते थे पहले ही वो
चलेगी कब पुरवाई।
हर प्रकार की मापतौल का
उनको मालूम था पैमाना।
हरदम उनकी बात रही है
सच्ची सोलह आना।
3.
दिक़्क़त और मुसीबत में वो
कब अपना आपा खोते थे।
रात को अपनी चारपाई में
बिन चिंता ख़ूब सोते थे।
सबर की कथरी में रखते थे
आदर्शों का सिरहाना।
हरदम उनकी बात रही है
सच्ची सोलह आना।
4.
उम्र के साथ-साथ अनुभव में
आती है गहराई।
दिवसावसान की बेला में
ज्यों बढ़ती है परछाँई।
अपने हाथों बुनते थे
वो अपना ताना-बाना।
हरदम उनकी बात रही है
सच्ची सोलह आना।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
गीत-नवगीत | स्व. राकेश खण्डेलवालविदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
कविता
लघुकथा
कहानी
कविता-मुक्तक
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं