क्यों
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया1 Mar 2019
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें?
कुछ भी लेना नहीं तुम्हें जब
करते क्यों बाज़ार की बातें?
1.
आते नहीं सामने क्यों
जो चेहरे हैँ असली?
मुखौटे में जीवन जीने की
रीत कहाँ से निकली?
परदे के पीछे रहना जब
करते क्यों संसार की बातें?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें?
2.
अपने पौरुष बल पर क्या
तुमको नहीं भरोसा?
पराधीनता के आग़ोश में
क्यों तुम रहे हमेशा?
सिंहनी के वंशज होकर भी
करते क्यों लाचार सी बातें?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें?
3.
डिग्रियों की बैसाखी पर
कब तक रोज़ी ढूँढ़ी जायेगी?
दिशाहीन शृंखला में कब तक
कड़िया जोड़ी जायेंगी?
देखी नहीं नींव जब तुमने
करते क्यों आधार की बातें?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें?
4.
परिचय मिला नहीं जीवन में
जिनको अभी किनारों का,
हाल भला कैसे कहते वो
बीच नदी की धारों का?
देखी नहीं नाव जब तुमने
करते क्यों पतवार की बातें?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें?
5.
शकुनी के शतरंजी पासों ने
चली हैं जब भी टेढ़ी चालें,
पाँच-पाँच पतियों की पत्नी
फिर छठवें के हुई हवाले,
मर्यादा की चौपड़ है तो
करते क्यों व्याभिचार की बातें?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें?
6.
इंद्र के मायावी रूपों से
कब तक अहिल्या छली जायेगी?
धर्म रक्षकों की छाती पर
कब तक यूँ ही मूँग दली जायेगी?
शील भंग जब कर्म तुम्हारा
करते क्यों संस्कार की बातें?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें?
7.
शर-शैय्या पर भीष्म पितामह की
साँस कहाँ टूटने पायी?
शस्त्र और शास्त्र साथ मिले जब
अधर्म ने है मुँह की खाई।
करना है "अमरेश" तुम्हें कुछ
करते क्यों न सुधार की बातें?
भूल गए हो कैसे तुम
अपने अधिकार की बातें?
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