जब नियति परीक्षा लेती है
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया1 Mar 2019
जब नियति परीक्षा लेती है।
वह कठिन यातना देती है।
1.
विघ्न और बाधा सहकर,
पुरुषार्थ थके कुछ रह-रहकर,
सर्वस्व न्योछावर होने पर,
मरघट में जाकर सोने पर,
सत्य-धर्म के पालन की,
मुश्किलें कहाँ कम होती है।
2.
रिश्तों में जहाँ दिखे स्वारथ,
होती हर रोज महाभारत,
अज्ञातवास की लिए घुटन,
पांडव विचरण करते वन-वन,
अपमान घूँट पीकर पांचाली,
अश्रुओं से नयन भिगोती है।
3.
डरा-डरा हर पात दिखे,
सहमी-सहमी सी प्रात दिखे,
जब दिनकर भी लाचार दिखे,
बदला सब कारोबार दिखे,
कहना मुश्किल हो जाता है,
क्या सुबह भी ऐसी होती है।
4.
क़लम चले यूँ झुक-झुककर,
सत्य लिखे कुछ रुक-रुककर,
फिर भाग्य मनुजता का फूटे,
किश्ती जब नाविक ख़ुद लूटे,
कुनबा पूरा ढह जाता है,
यूँ परिधि विखंडित होती है।
5.
वायस और शृगाल सभी,
मिल करते ख़ूब धमाल सभी,
टुकड़ों में उपवन बँट जाता,
मनचाहा हिस्सा छँट जाता,
रह जाता हंस हाथ मलकर,
जब क़िस्मत खोटी होती है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
कविता
लघुकथा
कहानी
कविता-मुक्तक
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं