कमरबंद
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मैं कमरबंद हूँ—
शृंगार नहीं,
एक अनकहा अनुबंध हूँ
देह और सामाजिक मर्यादा के बीच।
सोने-चाँदी से गढ़ा गया मेरा रूप,
किन्तु मेरा भार—
बस धातु का नहीं होता,
वह होता है
परंपराओं का,
जिन्होंने स्त्री की कमर पर
सदियों से अधिकार जमाया है।
कभी चुपचाप खनक उठती हूँ
उसके हर एक मोड़ पर,
उसकी चाल में—
शालीनता का संगीत बनकर,
तो कभी बँध जाती हूँ कसकर
उसकी स्वाभाविक उड़ानों को
संयम की ज़ंजीर में।
मैंने देखा है
उसका बचपन—
जब पहली बार पहनाया गया मुझे
एक खेल की तरह,
और फिर
उसका यौवन—
जब खेल नहीं,
एक नियति बन गई मैं।
मैंने सुना है
उसका मौन—
जब वह
सजते हुए भी
भीतर से सिमटती थी,
मुझे ढोते हुए भी
अपनी पहचान तलाशती थी।
मैं हूँ—
जो उसके हर उत्सव में साथ रही,
पर हर विद्रोह में अकेली छूट गई।
अब समय है—
कि मुझे पहनते हुए
वह चुन सके अपनी मर्यादा स्वयं,
कि मैं गहना बनूँ,
बंधन नहीं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अधनंगे चरवाहे
- अनाविर्भूत
- अवसरवादी
- अहिल्या का प्रतिवाद
- अख़बार वाला
- आँखें मेरी आज सजल हैं
- आँगन
- आज की यशोधरा
- आरक्षण की बैसाखी
- आस्तीन के साँप
- आख़िर क्यों
- इक्कीसवीं सदी
- उपग्रह
- उपग्रह
- कछुआ धर्म
- कमरबंद
- कुरुक्षेत्र
- कैक्टस
- कोहरा
- क्यों
- खलिहान
- गाँव - पहले वाली बात
- गिरगिट
- चुप रहो
- चुभते हुए प्रश्न
- चूड़ियाँ
- चैत दुपहरी
- चौथापन
- जब नियति परीक्षा लेती है
- ज्वालामुखी
- तितलियाँ
- दहलीज़
- दिया (अमरेश सिंह भदौरिया)
- दीपक
- दृष्टिकोण जीवन का अंतिम पाठ
- देह का भूगोल
- देहरी
- दो जून की रोटी
- धरती की पीठ पर
- धोबी घाट
- नदी सदा बहती रही
- नयी पीढ़ी
- नेपथ्य में
- पगडंडी पर कबीर
- परिधि और त्रिभुज
- पहली क्रांति
- पीड़ा को नित सन्दर्भ नए मिलते हैं
- पुत्र प्रेम
- प्रभाती
- प्रेम की चुप्पी
- फुहार
- बंजर ज़मीन
- बंजारा
- बुनियाद
- भगीरथ संकल्प
- भाग्य रेखा
- भावनाओं का बंजरपन
- भुइयाँ भवानी
- मन मरुस्थल
- मनीप्लांट
- महावर
- माँ
- मुक्तिपथ
- मुखौटे
- मैं भला नहीं
- योग्यता का वनवास
- रहट
- रातरानी
- लेबर चौराहा
- शस्य-श्यामला भारत-भूमि
- शान्तिदूत
- सँकरी गली
- सती अनसूया
- सरिता
- सावन में सूनी साँझ
- हल चलाता बुद्ध
- ज़ख़्म जब राग बनते हैं
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
- कृष्ण का लोकरंजक रूप
- चैत्र नवरात्रि: आत्मशक्ति की साधना और अस्तित्व का नवजागरण
- जगन्नाथ रथ यात्रा: आस्था, एकता और अध्यात्म का महापर्व
- बलराम जयंती परंपरा के हल और आस्था के बीज
- बुद्ध पूर्णिमा: शून्य और करुणा का संगम
- योगेश्वर श्रीकृष्ण अवतरणाष्टमी
- रामनवमी: मर्यादा, धर्म और आत्मबोध का पर्व
- लोक आस्था का पर्व: वट सावित्री पूजन
- विश्व योग दिवस: शरीर, मन और आत्मा का उत्सव
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
सांस्कृतिक कथा
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ललित निबन्ध
चिन्तन
शोध निबन्ध
कहानी
ललित कला
पुस्तक समीक्षा
कविता-मुक्तक
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं