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मेरे आदर्श, अखंड भारत के शिल्पी—लौह पुरुष सरदार पटेल की 150वीं जयंती पर एक भावपूर्ण नमन

 

 

आज, 31 अक्टूबर 2025 को जब पूरा राष्ट्र भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती मना रहा है, तो एक रचनाकार के रूप में मेरा हृदय श्रद्धा, गर्व और कृतज्ञता से भर उठता है। मेरे लिए सरदार पटेल केवल इतिहास के पन्नों में दर्ज एक नाम नहीं हैं, बल्कि वे उस चरित्र, त्याग और संकल्पशक्ति के जीवंत प्रतीक हैं, जिन्हें मैं अपने जीवन का आदर्श मानता हूँ। अखंड भारत के इस महान शिल्पी को मेरी ओर से कोटि-कोटि नमन। 

सरदार पटेल को प्रायः ‘लौह पुरुष’ कहा जाता है, और यह उपाधि उनके व्यक्तित्व को पूर्णतः चरितार्थ करती है। उनका जन्म गुजरात के एक साधारण किसान परिवार में हुआ, जहाँ उन्होंने परिश्रम, ईमानदारी और आत्मसम्मान के संस्कार सीखे। लंदन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई करना और फिर लौटकर वकालत का आरामदायक जीवन त्यागकर महात्मा गाँधी के आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ना—यह सिद्ध करता है कि उनका संकल्प हिमालय से भी ऊँचा और अडिग था। मेरे जैसे रचनाकार के लिए उनका जीवन एक खुली किताब है—जो सिखाती है कि शांत रहकर भी सबसे बड़ा तूफ़ान लाया जा सकता है। उनकी वाणी में भले ही गाँधी जी जैसा करुणा-भरा ओज न हो, पर उनके निर्णयों में लोहे जैसी दृढ़ता और नैतिक साहस झलकता था। 

भारत की स्वतंत्रता के बाद देश लगभग 560 से अधिक रियासतों में बँटा हुआ था। ऐसा लगता था जैसे आज़ादी मिलकर भी भारत टुकड़ों में बँटा रह गया है। यह वह समय था जब भारत को एक सूत्र में बाँधने के लिए एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता थी, जिसमें बुद्धिमत्ता, कूटनीति और अडिग इच्छाशक्ति—सभी तीनों का अद्भुत संगम हो। यह गुण केवल एक व्यक्ति में था—सरदार वल्लभभाई पटेल। उन्होंने संवाद, समन्वय और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रयोग कर एकीकरण का ऐसा चमत्कार किया, जो आज भी प्रशासनिक और राष्ट्रीय एकता का आदर्श उदाहरण है। 

संवाद और समन्वय—उन्होंने अधिकांश रियासतों के राजाओं को भारत के भविष्य की यथार्थ तस्वीर दिखाई और उन्हें स्वेच्छा से विलय के लिए प्रेरित किया। 

दृढ़ता और निर्णय—जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर के मामलों में उन्होंने जो निर्णायक क़दम उठाए, वे उनके राष्ट्रप्रेम और दृढ़ता का शिखर हैं। यह केवल भौगोलिक एकीकरण नहीं था, बल्कि भारत की आत्मा को टूटने से बचाने का महायज्ञ था। 

आज जब हम एक अखंड राष्ट्र के रूप में खड़े हैं, तो इस एकता की नींव में सरदार पटेल की दूरदृष्टि, निष्ठा और अथक परिश्रम की ईंटें जुड़ी हैं। इसी कारण उनकी जयंती को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाना हमारे लिए मात्र औपचारिकता नहीं, बल्कि एक पवित्र कर्त्तव्य है। 

सरदार पटेल का हृदय सदैव जनता, विशेषकर किसानों से जुड़ा रहा। बारडोली सत्याग्रह (1928) इसका सजीव प्रमाण है। जब किसानों पर अत्यधिक कर थोपे गए, तब पटेल ने धैर्य, विवेक और अद्भुत संगठन-शक्ति से आंदोलन का नेतृत्व किया। उनकी ईमानदार नीति और शांत दृढ़ता से प्रभावित होकर किसानों ने उन्हें स्नेहपूर्वक ‘सरदार’ की उपाधि दी। यह वह उपाधि थी, जो किसी सरकार ने नहीं, बल्कि जनता ने अपने नेता को प्रेम और श्रद्धा से प्रदान की थी। 

इस 150वीं जयंती पर, जब मैं गुजरात के ‘एकता नगर’ में खड़ी 182 मीटर ऊँची स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी की ओर देखता हूँ, तो वह मुझे केवल धातु और कंक्रीट की प्रतिमा नहीं लगती, बल्कि भारत के गौरव, त्याग और एकता का सजीव प्रतीक प्रतीत होती है। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में ‘रन फ़ॉर यूनिटी’ जैसे कार्यक्रम और एकता पर्व के आयोजन, 
सरदार पटेल की उस अमर विरासत को जन-जन तक पहुँचाने का एक सशक्त प्रयास हैं। 

सरदार पटेल का जीवन हमें यह सिखाता है कि—राष्ट्र के हित में लिया गया हर कठोर निर्णय, इतिहास की दिशा बदल देता है। उनका सन्देश कालातीत है—

“विविधता में एकता केवल एक नारा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। इसे जीना ही सच्ची देशभक्ति है।” 

मैं, एक शिक्षक और रचनाकार के रूप में, अपने कर्म और लेखनी के माध्यम से उनके “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के स्वप्न को साकार करने का संकल्प लेता हूँ। 

भारत माता की जय! 

सरदार वल्लभभाई पटेल अमर रहें! 

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