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भारतीय वायुसेना दिवस— शौर्य की उड़ान, आकाश का अभिमान

 

हर साल 8 अक्टूबर का दिन भारतीय इतिहास में गर्व और प्रेरणा का प्रतीक बनकर आता है। यह दिन है—भारतीय वायुसेना दिवस का। साल 1932 में अपनी स्थापना के बाद से भारतीय वायुसेना ने न केवल युद्धक्षेत्र में, बल्कि हर उस परिस्थिति में अपनी वीरता और समर्पण का परिचय दिया है जहाँ देशप्रेम की सच्ची परीक्षा होती है। वायुसेना का आदर्श वाक्य “नभः स्पृशं दीप्तम्”— “दीप्तिमान होकर आकाश को स्पर्श करो”— केवल एक नारा नहीं, बल्कि हर वायुसैनिक के हृदय में बसने वाला विश्वास है। यही विश्वास उन्हें उस ऊँचाई तक ले जाता है जहाँ देशभक्ति अपने सबसे उजले रूप में दिखाई देती है। 1947 से लेकर कारगिल और बालाकोट तक, भारतीय वायुसेना ने हर चुनौती के समय यह सिद्ध किया है कि भारत का आकाश अडिग है, और उसकी सीमाएँ अटूट। उन विमानों की गर्जना केवल शक्ति की ध्वनि नहीं होती, बल्कि यह आश्वासन भी—कि देश का हर नागरिक सुरक्षित है। 

वायुसेना के योद्धा केवल सीमाओं के रक्षक नहीं, बल्कि मानवता के भी प्रहरी हैं। प्राकृतिक आपदाओं, राहत कार्यों या किसी भी आपातकाल में उनकी उपस्थिति आशा की पहली किरण बन जाती है। 

वे अपने परिवार से दूर रहकर अनगिनत परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं—यही उनकी सेवा का असली अर्थ है। आज जब हम वायुसेना दिवस मना रहे हैं, तब यह स्मरण करना भी आवश्यक है कि उनकी वीरता के साथ-साथ त्याग और अनुशासन भी उनके जीवन का अविभाज्य अंग है। उनकी उड़ानें केवल मशीनों की शक्ति नहीं, बल्कि मानवीय साहस और आत्मबल की कहानी हैं। हमें गर्व है कि भारत जैसे शांति-प्रिय देश की रक्षा ऐसी सेना के हाथों में है जो तकनीक के साथ-साथ करुणा और मानवता की मिसाल भी पेश करती है। वायुसेना दिवस हमें यह सिखाता है कि ऊँचाइयाँ केवल आकाश में नहीं, विचारों में भी पाई जाती हैं। 

आइए, इस दिवस पर हम उन ज्ञात-अज्ञात नायकों को नमन करें जिन्होंने अपने पंखों से भारत के स्वाभिमान को उड़ान दी। उनकी वीरता भारत के आकाश में हर सुबह एक नए सूरज की तरह चमकती रहे। 

जय हिन्द, जय वायुसेना!

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