गुरुदक्षिणा
काव्य साहित्य | कविता जैनन प्रसाद1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
सायक बिकते हैं
धनुर्विद्या भी बिकती है
पर बिकते नहीं हैं तो केवल
द्रोणचार्य जैसे गुरु।
लेकिन!
सौभाग्य से अगर
मिल भी गए
और कृपालु हों वे
अर्जुन ही समझ लें तुम्हें
तो किंकर्तव्यविमूढ़ की भाँति
तुम लक्ष्य अनुसंधान कर पाओगे?
भेद पाओगे! क्या?
वह आँख?
अगर इस दुष्कर कार्य में
सफलता मिल भी गई
तो माँग बैठेगा तुमसे!
गुरुदक्षिणा!
जो तुम दे नहीं पाओगे
क्योंकि तुम
एकलव्य नहीं हो।
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