जाने क्यूँ
काव्य साहित्य | कविता सूर्यप्रकाश मिश्रा1 Apr 2015
किसी दर्द से कहो यूँ न बहता रहे,
निश्छल झरने सा यूँ न झरता रहे।
तेरे होने से मुझको बहुत आस है,
कुछ तो है जो मेरे बहुत पास है।
जब भी तनहा हुआ मैं रोता रहा,
तेरे आँचल के साये में सोता रहा।
जब भी गुज़री है शाम तेरी यादों भरी,
तेरी बाँहों में आयी नज़र जन्नत मेरी।
दूर ही सही पर मेरे ख़्वाबों में तू,
हर लम्हा मेरी साँसों के है रागों में तू।
जाने क्यूँ हर घड़ी याद तेरी ही आती रही,
जाने क्यूँ उम्र भर ज़िन्दगी सताती रही.
मेरे दर्द से कह दो कोई यूँ न बहता रहे,
निर्झर झरने सा यूँ ही न झरता रहे।
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