जाने वाले
काव्य साहित्य | कविता डॉ. एग्नेस ठाकुर3 May 2012
यादों के दीप जलाकर
   दर्द की दुनिया बसाकर,
      खुशियों क जहाँ तो -
        क्यों चले जाते हैं
          ये जाने वाले!
            ये जाने वाले!
गीतों की सरगम सुनकर
   भावों के पंचम सजाकर
      प्यार की लय अधूरी -
         क्यों छोड़ जाते हैं,
            ये जाने वाले!
खुशियों का राज़ बताकर
   उदासियों को हँसी सिखाकर,
       होठों की फिर हँसी चुराकर -
         क्यों रूठ जाते हैं
             ये जाने वाले!
सोयी उमंगों को जगाकर
   दिल की धड़कनओं को उलझाकर,
       जाकर उस पार फिर -
         क्यों नहीं आते हैं
            ये जाने वाले!
यादों के बादल बनकर,
    हृदय-भूमि पर बरसकर
       सूखे ज़ख़्मों को हरा -
          क्यों कर जाते हैं
              ये जाने वाले?
ये जाने वाले....!
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