खुला नया बाज़ार यहाँ
शायरी | नज़्म डॉ. उमेश चन्द्र शुक्ल1 Jun 2016
खुला नया बाज़ार यहाँ सब बिकता है
कर लो तुम एतबार यहाँ सब बिकता है
जाति धर्म उन्माद की भीड़ जुटा करके
खोल लिया व्यापार यहाँ सब बिकता है
बदल गई हर रस्म वफ़ा के गीतों की
फेंको बस कलदार यहाँ सब बिकता है
दीन धरम ईमान जालसाज़ी गद्दारी
क्या लोगे सरकार यहाँ सब बिकता है
एक के बदले एक छूट में दूँगा मैं
एक कुर्सी की दरकार यहाँ सब बिकता है
सुरा - सुन्दरी नोट की गड्डी दिखलाओ
लो दिल्ली दरबार यहाँ सब बिकता है
अगर चाहिये लोकतंत्र की लाश तुम्हें
सस्ता दूँगा यार यहाँ सब बिकता है
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