ख़याल रखना
शायरी | नज़्म देव दीपक1 Dec 2020 (अंक: 170, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
मर जाऊँ अगर मैं तो यह ख़्याल रखना
मेरे क़ातिल से मेरा यह सवाल रखना
ख़ता क्या थी जो इ्श्क़ में फ़ना हुए हम
तुमको चाहना तुम्हें ज़िंदा ए मिसाल रखना ?
बेरहम हवाओं से तेरी चुन्नी सँभाल रखना
ग़ैरों की नज़र से लड़ने की मजाल रखना
तुम तो मासूम थे तुम्हें क्या पता होगा
तुम्हारे अपने चाहते थे तुम्हें लूट का माल रखना
हर मयस्सर कोशिश कि तुम्हें ख़ुशहाल रखना
कोशिशों का अंजाम हुआ ख़ुद को बदहाल रखना
यूँ तो कितने दरिया बह गये परवाह नहीं मगर
तेरी आँखों से क़तरा भी ना गिरे
इसलिए जेब में रूमाल रखना
लड़खड़ाते हुए क़दमों की सीधी चाल रखना
घुटती हुई साँसों को ज़िंदा बहाल रखना
तुमने भी कमी न की मेरी मौत का सामां जुटाने में
सुर्ख़ लाल गालों पर उलझे हुए बाल रखना
मेरी हर एक ज़िंदा साँस का मलाल रखना
दिल में ज़हर बहना मगर चेहरे पर जमाल रखना
अच्छा है चीर दो मेरा कलेजा पर एक शर्त है
ख़ंजर तेरे हाथों में हो इसका ख़याल रखना
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