कोई गीत गाएँ
काव्य साहित्य | कविता मुकेश बोहरा 'अमन'15 Jun 2019
चलो गुनगुनाएँ, कोई गीत गाएँ।
संगीत सरगम चलो मीत गाएँ॥1॥
सुर, ताल साथी नहीं है ज़रूरी।
ज़रूरी है मिटना दिल बीच की दूरी॥
बस प्यार से ही सब हो लबालब,
हम प्रीत बाँटे और प्रीत पाएँ।
चलो गुनगुनाएँ, कोई गीत गाएँ॥2॥
मीठी हो वाणी, मधुर और मधुर हो।
कोयल की कुह कुह, उधर और इधर हो॥
मानव की वाणी में फिर से पुनः अब,
न गाया गया जो, वो संगीत आएँ।
चलो गुनगुनाएँ, कोई गीत गाएँ॥3॥
बुराई का कल भी हमेशा बुरा है।
भलाई से ही तो हर चौक पुरा है॥
मानव के दिल से हमेशा-हमेशा,
बुराई, बुरा है, वो बीत जाएँ।
चलो गुनगुनाएँ, कोई गीत गाएँ॥4॥
चैनो-अमन का अपना मज़ा है।
संसार ख़ुशियों का सपना सजा है॥
चाहे जगत में बस हार हो हासिल,
लेकिन दिलों को, अमन जीत जाएँ।
चलो गुनगुनाएँ, कोई गीत गाएँ॥5॥
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