क्षितिज जैन ’अनघ’ - 1
काव्य साहित्य | दोहे क्षितिज जैन ’अनघ’15 Nov 2020 (अंक: 169, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
आज के इस धनयुग में, सभी का हुआ मोल
बिकाऊ आदमी बने, यहाँ तुला के तोल॥१॥
चूल्हे में विद्वान गए, पूज्य मात्र धनवान
वही श्रेष्ठ आचार में, वही ज्ञानी महान॥२॥
उस बेबस मज़दूर का, दिल टूटा बन काँच
शाम को जब जल न सकी, फिर चूल्हें में आंच॥३॥
रमणीय स्थल में करें, युवक-युवती विहार
झुग्गी के बालक अभी, रोते बन लाचार॥४॥
विद्वान नव गोष्ठी बुला, करें चर्चा विचार
पीछे की होर्डिंग पर, मालिक की जैकार॥५॥
वितंडा रूप युद्ध में, विवेक होता क्लांत
बुद्धिजीवी सुभट हुए, शस्त्र बनते सिद्धान्त॥६॥
सुख ख़रीदना चाहते, लगा स्वर्ण का दाम
अंगुलियाँ घी में डुबा, इच्छित बस आराम॥७॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
दोहे | डॉ. सत्यवान सौरभमन को करें प्रकाशमय, भर दें ऐसा प्यार! हर…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
ग़ज़ल
लघुकथा
कहानी
किशोर साहित्य कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं