क्या लिखना दवा है
काव्य साहित्य | कविता पंचराज यादव15 May 2019
रात में बारह बजे हैं
सिर पर सफ़ेद पट्टी रखकर भी
क़लम उठाने का मन
क्या लिखवाएगी क़लम?
दर्द कम नहीं है परंतु
क्या लिखना दवा है?
जिससे मैं दर्द को नहीं महसूस करता।
अभी तक पढ़ा था
लिखना विद्रोह है।
कितने लोग जेल गए
कितनों की हत्याएँ हुईं
पत्रकार मार दिये जाते हैं
लेखक नज़रबंद हो जाते हैं।
लेकिन मुझे क्यों लगता है
कि लिखना दवा है
सिर दर्द की ही नहीं
हत्या, बलात्कार जैसी घटनाओं को
शह देने वाली ताक़तों को
सबके सामने नग्न कर देने की।
लिखना दवा है
पूरे सामाजिक ढाँचे को
पलट देने की
अपने अधिकार पाने की
बीमार विचारों को
स्वस्थ करने की
प्रेमियों को
अभिव्यक्त करने की।
कि लिखना दवा है
हिन्दू-मुस्लिम, गाय-गौरैया
के अंधाधुंध उन्माद से
बाहर लाने की।
लिखना दवा है
मनुष्य को
मनुष्य बनाने की।
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