क्या तुम ही हो
काव्य साहित्य | कविता बृजमोहन गौड़1 Dec 2019 (अंक: 145, प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
सूरज से बिखरा जैसे सोना
वो नदियों का कल कल बहना
कूलों के फूलों पर तितली
या मीन पियासी हो जल में। क्या...
नीरव पेड़ों से लिपटी लता
कोयल की कूक छिपा पता
धानी चूनर, लहराती सी
स्वच्छंद उड़ान विहंगों सी। क्या...
वीणा की जैसे नाद सजी
सतरंगी कोई फाग मची
छन छन अमराई धूप पगी
या पा यौवन सजी रूपसी। क्या...
एक नीड़ सजाती बुलबुल सी
सपनों के जुगनू लगाती सी
बुनती ले आस ताना बाना
ये आस लगा कि चले आना। क्या...
मन धीर धरे उस देहरी पर
तन धारी नाम चुनरिया को
तकती विकल डगरिया को
वो जोहती बाट सँवरिया की। क्या...
हाँ वो तुम ही हो।
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