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माँ (दीपा जोशी)

जीवन वन में स्‍वच्‍छंद सुमन सी 
अंबर चुंबी हिमश्रृंगों सी 
                   विधु की प्राणमयी धारा सी 
                   माँ गंगा की निर्मल काया सी 


स्‍नेहमयी घन अम्‍बर जैसी 
ममतामयी शीतल समीर सी 
                   विशाल हृदयी अथाह सागर जैसी 
                   माँ की छवी परम पावन सी


भोर की प्रथम उज्‍जवल किरण सी 
सघन धूप में छाँव सी 
                   गोधुली में दीपक जैसी 
                   माँ निशापथ में तारक सी


भाषा में स्‍वर व्‍यंजन जैसी 
गीतों में सुर ताल सी 
                   वीणा के मधुर सुरों सी 
                   माँ मुरली की तान सी


वेदों के ज्ञान जैसी 
गीता के सार सी 
                   गुरमुख की वाणी जैसी 
                   माँ काबा काशी सी 


चिर सखी राधा जैसी 
पथ दृष्‍टा सुरदर्शन सी 
                   देव सृष्‍टि की प्रतिकृति सी 
                   माँ महातरु छाया सी 


श्रद्धा की परिभाषा जैसी 
जीवन का विश्‍वास सी 
                   धरा के धैर्य का प्रतिरूप सी 
                   माँ स्‍‍र्वज्ञय ज्ञाता सी 


हृदय में स्‍पंदन जैसी 
श्‍वास निश्‍वास के बंधन 
                   रोम रोम में रुधिर सरीखी 
                   माँ परम कल्‍याणी सी 


देवालय की अनुपम मूरत सी 
गिरजा घर की सुखद शान्‍ति सी

 

पारस सी शक्‍ति धारणी 
माँ तुम ही परमेश्‍वर हो
माँ तुम ही परमेश्‍वर हो

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