माँ! शारदे तुमको नमन
काव्य साहित्य | कविता आचार्य संदीप कुमार त्यागी ’दीप’31 May 2008
शारदे तुमको नमन माँ, शारदे तुमको नमन।
श्वेत हिम-वसने अनुपमे शरद ऋतु सम सुखसदन॥
शुभ्र शोभा रजत वर्णी स्वर्ण पर्णी सौख्यदा।
सार हो संसार का हे शारदे अशरण – शरण॥
तव वल्लकी का नाद अनह्द गूँजता अविराम है।
कर रहा झँकृत मेरे उर तार को जिसका श्रवण॥
काव्य की तुम प्रेरणा आधार जीवन का तुम्हीं।
हो स्वर मेरे संगीत का पीयूष का ज्यों आचमन॥
हूँ अकिंचन “दीप” अति मैं क्या करूँ तुमको समर्पित।
बस हृदय की वाटिका के भेंट ये श्रद्धा-सुमन॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अनुपमा
- अभिनन्दन
- उद्बोधन:आध्यात्मिक
- कलयुग की मार
- कहाँ भारतीयपन
- जवाँ भिखारिन-सी
- जाग मनवा जाग
- जीवन में प्रेम संजीवन है
- तुम्हारे प्यार से
- तेरी मर्ज़ी
- प्रेम की व्युत्पत्ति
- प्रेम धुर से जुड़ा जीवन धरम
- मधुरिम मधुरिम हो लें
- माँ! शारदे तुमको नमन
- राष्ट्रभाषा गान
- संन्यासिनी-सी साँझ
- सदियों तक पूजे जाते हैं
- हसीं मौसम
- हिन्दी महिमा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}