मेरी सफलता माँ
काव्य साहित्य | कविता रोहिताश बैरवा1 Nov 2020 (अंक: 168, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
होगी सफलता की नई सुबह,
जब पहली किरण पड़ेगी तेरे चरणों में।
फिर पक्षियों की चहचहाट कलरव क्रीड़ा,
लायेगी नई सुबह तेरे आँगन में॥
ज़रूर उजाला होगा माँ मेरी नई सुबह का,
वही उजाला ख़ुशी देगा माँ तेरे जीवन में।
फिर दीप ना बुझेगा तेरे आँगन में,
फिर यही उजाला ख़ुशी भर देगा तेरे जीवन में॥
चढ़ेगा दिन माँ मेरी सुबह का,
फिर बैठ निहारना आँगन की ख़ुशी को।
कभी ना बैठूँगा न थकूँगा ना आराम लूँगा,
तब ख़ुशियों से भर दूँगा तेरे आँगन को॥
होगी सफलता की माँ नई सुबह,
आँधी तूफ़ान में भी चलकर पा लूँगा मंज़िल को।
तू ना कभी दुखी होना ना ही निराश,
ख़ुशियों से भर दूँगा तेरे आँगन को॥
जो कर ना सका माँ ये सब तो,
निकम्मा धोखेबाज़ झूठा मैं कहलाऊँगा।
तेरी ख़ुशी की ख़ातिर सूरज पार तक जाऊँगा,
कर दूँगा प्राण न्योछावर माँ तेरे आगे ना शीश उठाऊँगा॥
बस माँ तेरी ख़ुशी की खातिर ही,
लगा रहूँगा आँधी तूफ़न बारिश में।
जो कर ना सका ख़ुश तुझे तो,
शीश समर्पित कर दूँगा तेरे चरणों में॥
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