आजकल (रोहिताश बैरवा)
काव्य साहित्य | कविता रोहिताश बैरवा1 Oct 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
हर एक पल बड़े ही तनाव में जी रहा हूँ,
में आज कल सुख के अभाव में जी रहा हूँ।
दिन रात का होश नही बस समय गुज़ारता हूँ,
मैंं आजकल तानों के दुष्प्रभाव में जी रहा हूँ॥
हर दिन गुज़रता है चिंताओं में मेरा,
मैं आज कल अजीब से स्वभाव में जी रहा हूँ।
बुरे सम्बोधन से मन दुखी रहता है,
मैं आजकल दुश्वारियों के कुप्रभाव में जी रहा हूँ॥
क़िस्मत मेरे साथ नन्हीं और सब लोग भी विरोधी हैं,
मैं आजकल फिर भी जीत के भाव मे जी रहा हूँ।
बहता था कभी मैं भी इन नदियों की तीव्र धार सा,
मैं आजकल चुपचाप शांत जमाव सा जी रहा हूँ॥
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