मिठास
काव्य साहित्य | कविता डॉ. विनय ‘विश्वास’26 May 2014
सिंकती हुई रोटी की शक्ल में खिली आग
पत्थर बहाते झरने की शक्ल में खिला पानी
आसमान भरती उड़ान की शक्ल में खिली हवा
फूलों के खिलने की शक्ल में खिली मिट्टी
... मैं... अपनी बेटी की शक्ल में खिला
मैंने कहा-
मुक्त बच्चा सबसे अच्छा
वो बोली- पापा बच्चा सबसे अच्छा
मैंने कहा-
मुक्ता रानी गुड़िया रानी बिटिया रानी है
वो तपाक से बोल पड़ी-
पापा राने गुड्डे राने बेटे राने हैं
मैंने कहा- मेरा मुक्तेश
उसकी बाँहें फैल गईं- मेरा पापेश
आज भी उसका बचपन
मिठास का उद्गम बताता है
आदमी जो बोलता है
वही
उसके पास लौटकर आता है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं