नदियाँ
काव्य साहित्य | कविता सतीश सिंह15 Oct 2020
हज़ार-हज़ार
दु:ख उठाकर
जन्म लिया है मैंने
फिर भी औरों की तरह
मेरी साँसों की डोर भी
कच्चे महीन धागे से बँधी है
लेकिन
इसे कौन समझाए इंसान को
जिसने बना दिया है
मुझे एक कूड़ादान।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}