नज़रिया
काव्य साहित्य | कविता परी एम 'श्लोक'6 Feb 2015
निकलो
नज़रिये की
धुंध से बाहर
देह की चटकीली
चाह से आगे
अपेक्षाओं का
बोझ उतारो
मन में बसाओ
रूह का
रिश्ता बनाओ
प्रेम करो मुझे...
और
फिर जानो
कि
कोयला नहीं हूँ मैं
बल्कि
जीवन के संघर्षो की
भट्टी में
निरंतर तप के
बन चुकी सोना हूँ!!
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