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निरन्तर

टूट कर भी
कहाँ टूटते हैं सपने
बस रह जाते हैं
मन के सुदूर कोने में
कुछ वक़्त के लिये
मौन
और मुखरित हो जाते हैं
अवसर पाते ही।
             एक सितारे के टूटने से
                   काश का विस्तार
                      कम नहीं हो जाता
                         आँसुओं की कुछ बूँदों से
                             नहीं बढ़ता है
                                सागर का तल
                 बस कुछ हल्का
                      हो जाता है मन
                    चिंतन और मंथन की
                अप्रिय प्रक्रिया से
       गुज़रने के लिये।
तूफ़ानों से
उजड़ने के बाद
भूकंप से ढह जाने के बाद
दंगों, बाढ़, बमों का
तांडव भुगतने के बाद भी
हर बार
उठ खड़ी होती हूँ मैं
संकल्प के साथ
संजीवनी के सहारे
नये सपनों को
सजाये हुए।

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