ओर्चिड हूँ मैं
काव्य साहित्य | कविता कुमारी अर्चना20 Sep 2017
अमीर दुल्हों के सेहरे
वैवाहिक जोड़ के
गलमाला बन
शान से शादी के मंडपों में
सजता हूँ
ओर्चिड नाम है मेरा
महँगा फूल हूँ मैं!
मुझे ख़रीदना
हर किसी के बस की बात नहीं
आकर्षक धन है मेरा
गुलाब की ख़ुशबू नहीं मुझ में
पर गुलाब से महँगा बिकता हूँ
मुझे ख़रीदने वाला
दस बार अपनी जेब टटोलता है
असमंजस में सदा रहता है
ख़रीदे या ना ख़रीदे!
एक रात के नशे जैसा हूँ
सुबह होश में कर देता हूँ
कब तक लोंगों की जेबें
ख़ाली कर देता हूँ
सारे फूल जलते हैं मुझसे
बिना बहुत अच्छी ख़ुशबू के
कैसे महँगा बिकता हूँ!
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