पाप ही पाप
काव्य साहित्य | कविता संजीव बख्शी3 Feb 2018
यहाँ हो रहे पाप को देख कर
विशाल हिमालय रो रहा है
उसके आँखों से निकल रही है आँसू की धारा
पश्चाताप नहीं कर रहे हैं हम आप
बल्कि धोने में लगे हैं
अपने जीवन भर के पाप
इस सबके बावजूद कि
हम बु़द्धिमान हैं
हमें रासायनिक विधि का ज्ञान है
और हम साफ कर सकते है
गंगा को चाहे जब
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