फिर कठिन होगा
काव्य साहित्य | कविता माधव नागदा31 Mar 2017
भूतकाल से चिपके
पिचके गुब्बारे को
फुलाने की
कोशिश मत करो
कान सुन्न हो जायेंगे
फिर कठिन होगा
हर वाजिब
और तर्कसंगत बात
सुन पाना!
पंचसितारा
रंगीन रोशनियों की चकाचौंध में
इतना मत नहाओ
आँखें चौंधिया जायेंगी
फिर कठिन होगा
रिश्तों का मखमली धागा
आत्मीयता के अंकुए में पिरोना!
बैयरे के ठंडे हाथों
और खुरदरी अंगुलियों से
छिटका
चटपटा मसालेदार खाना
यों
चटखारे ले-लेकर मत खाओ
जीभ कलिकाएँ मर जाएँगी
फिर कठिन होगा
माँ के बनाये
भोजन में घुले
वात्सल्य का स्वाद चख पाना
साबुन की सफ़ेदी
बाइक की रफ़्तार
क्रीम की ख़ुशबू
त्वचा और बालों को
रेशमी बनाने वाले विज्ञापनों के
मकड़जाल में
मत उलझो
संवेदनाएँ भोंथरी हो जाएँगी
फिर कठिन होगा
मजदूर के पसीने की महक
और
आलीशान बंगले में पसरे
किसी
आदमखोर की बदबू में
फ़र्क करना!
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