पोटली
काव्य साहित्य | कविता शबनम शर्मा1 May 2019
बड़े नाज़ों से पाल पोस
मैंने पकड़ा दी अपने
प्राणों की डोर किसी
अनजान पथिक को,
देना चाहती समस्त
संसार की ख़ुशियाँ,
कुछ कल्पना भरी,
कुछ यथार्थ से जुड़ी
परन्तु कई जगह
असमर्थ हो जाती
दृढ़ता से कह सकती,
मैंने पकड़ाई है तुम्हें
जाते हुए इक यादों भरी
बड़ी क़ीमती पोटली।
बिटिया, जब कभी भी
मेरी याद आये, खोल
कर कुछ निकाल लेना
उसे इस्तेमाल भी करना
वही है इक याद भरी
संस्कारों की पोटली,
जो तुम्हें कभी भी
भटकने न देगी।
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