नदी के पत्थर
काव्य साहित्य | कविता शबनम शर्मा15 Sep 2019
एक शाम, एक बाबू
नदी के तट पर खड़ा
निहारता रहा, नहाते
पत्थरों को, सफ़ेद
गोल-गोल पत्थरों पे अड़ा
आदेश दे, फटेहाल
पिंजर शरीरों को,
ट्रक भर भिजवा देना
सुनसान तट से टला
सुन ये आवाज़
पत्थर थर्रा गये
फुसफुसाये, गुहार की
कि बीच में बड़े
पत्थर ने पहली
बार प्यार से बात की,
चुन लिये गये हो
भिजवा दिये जाओगे
किस-किस बंगले
की शान कहलाओगे
चीखों से नदी गूँज गई,
रोये बड़े छोटे मिलकर
सब पत्थर गले लगकर
सोच कल लाखों प्रहारों को
हज़ारों टुकड़ों को,
हौसला दिया बड़े
पत्थर ने, विदाई
दर्दनाक हो उठी।
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