अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रकृति की मूक भाषा को समझाती कृति “प्रदूषण मुक्त सांसें”


 पुस्तक: प्रदूषण मुक्त सांसें
लेखक: योगेश कुमार गोयल  
प्रकाशक : मीडिया केयर नेटवर्क, 114, गली नं. 6, एम. डी. मार्ग, गोपाल नगर, नजफगढ़, नई दिल्ली - 110043
मूल्य: 260 रुपए
पेज: 190

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक, समसामयिक, सामाजिक, पर्यावरण विषयों पर विश्लेषणात्मक एवं सृजनात्मक लेख लिखने वाले लेखक श्री योगेश कुमार गोयल की इस वर्ष प्रकाशित पुस्तक “प्रदूषण मुक्त सांसें” इन दिनों काफ़ी चर्चा में है। “प्रदूषण मुक्त सांसें” के पूर्व लेखक की "मौत को खुला निमंत्रण”, “जीव-जंतुओं की अनोखी दुनिया”, “तीखे तेवर”, “दो टूक”, “जीव जंतुओं का अनोखा संसार” पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इस पुस्तक में प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण के सम्बंध में कुल 19 अध्याय दिए गए हैं। इस पुस्तक का शीर्षक “प्रदूषण मुक्त सांसें” अत्यंत सार्थक है। लेखक ने इस किताब में अपने तर्कसम्मत विचारों, सन्दर्भों के साथ उदाहरण भी दिए हैं और तथ्यों के साथ गहरा विश्लेषण भी किया है। पुस्तक को बहुत ही सरल एवं साधारण भाषा में लिखा गया है।

पुस्तक के एक अध्याय "पिघलते ग्लेशियर, बढ़ते खतरे" के अंतिम अनुच्छेद में पर्यावरण प्रदुषण के प्रति लेखक की गहरी चिंता व्यक्त हुई है। वे लिखते हैं “ग्लेशियरों के पिघलने को लेकर दुनिया भर में किए जा रहे तमाम शोधों और अध्ययनों से यह पूर्ण रूप से स्पष्ट हो चुका है कि अगर समय रहते विश्वभर के सभी देशों ने एकजुट होकर इन ग्लेशियरों को बचाने के लिए ठोस उपाय नहीं किए तो मानव सभ्यता को आने वाले दशकों में अभूतपूर्व जलवायु संकट का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। दरअसल वायु प्रदूषकों से ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के कारण इन प्रदूषकों से निकलने वाले कार्बन तथा अन्य हानिकारक सूक्ष्म कण ग्लेशियरों पर जमा होते रहते हैं, जिससे ग्लेशियर पिघलने के साथ-साथ मानसून का प्रसार तथा वितरण भी प्रभावित होता है। जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिसका असर पूरी दुनिया के समुद्रों पर पड़ रहा है।” 

एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए लेखक योगेश कुमार गोयल लिखते हैं कि “मानव निर्मित वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष करीब 4 लाख 70 हजार लोग मौत के मुँह में समा जाते हैं।” योगेश कुमार गोयल के द्वारा लिखी गयी यह पुस्तक पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कृति है। यह पुस्तक प्रदूषण की मूल अवधारणाओं को समझाने के साथ पर्यावरण संरक्षण पर महत्वपूर्ण सुझाव देती है। वायु प्रदूषण क्यों बढ़ रहा है? वायु प्रदूषण के क्या दुष्प्रभाव है? खेतों में पराली जलाने से होनेवाला प्रदुषण, जल संकट क्यों है? जल संरक्षण के कारगर उपाय कौन से है? भूमिगत जल का महत्व, नदी पुनर्जीवन, प्लास्टिक कचरे से होने वाला प्रदूषण, बाढ़ आने के कारण, वृक्ष और जंगल के महत्व, सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा जैसे पर्यावरण हितैषी ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा, ओज़ोन परत पतली होने की वज़ह, जंगल में आग की वज़ह और उसकी रोकथाम के उपाय, जैव विविधता के संकट - जीव-जंतुओं, पक्षियों पर मंडरा रहे ख़तरे जैसे विविध आयामों पर विस्तृत व्याख्या उक्त पुस्तक में की गई है। साथ ही प्रदूषण को कम करने हेतु पुस्तक में कई मौलिक एवं व्यावहारिक सुझाव भी दिए गए हैं, जिसका फ़ायदा सरकार और नागरिकों द्वारा उठाया जा सकता है।

पर्यावरण प्रदूषण आज एक भूमण्डलीय समस्या बन गई है। पुस्तक में वर्णित बातें समाज के लिए अमूल्य धरोहर है। यह पुस्तक प्रदुषण की विश्वव्यापी ज्वलंत समस्या का गहरा विश्लेषण करते हुए बहुत ही सरल तरीके से इस गंभीर समस्या के कारणों, इनके समाधान के लिए तथ्यों के साथ विवेचन करती है। यह पुस्तक पर्यावरण से सम्बंधित तमाम जरूरी पहलुओं पर प्रकाश डालती है। योगेश कुमार गोयल लिखते हैं "अगर हम वाकई चाहते हैं कि हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां साफ़-सुथरे वातावरण में बीमारी मुक्त जीवन जीएं तो हमें अपनी इस सोच को बदलना होगा कि यदि सामने वाला व्यक्ति कुछ नहीं कर रहा हो तो मैं ही क्यों करूँ? हर बात के लिए सरकार से अपेक्षा  करना भी ठीक नहीं। सरकारों का काम है किसी भी चीज के लिए क़ानून या नियम बनाना और जन-जागरूकता पैदा करना लेकिन ईमानदारी से उनका पालन करने की ज़िम्मेदारी तो हमारी ही है।" यह किताब बार-बार प्रभावी तरीक़े से यह समझाने की कोशिश करती है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए ज़रूरी है कि हम प्रकृति की मूक भाषा को समझें और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपना-अपना योगदान दें।

इस पुस्तक में लेखक लिखते हैं "अपनी छोटी-छोटी पहल से हम सब मिलकर प्रकृति संरक्षण के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। हम प्रयास कर सकते हैं कि हमारे दैनिक क्रियाकलापों से हानिकारक कार्बन डाई ऑक्साइड जैसे गैसों का वातावरण में उत्सर्जन कम से कम हो। पानी की बचत के तरीके अपनाते हुए जमीनी पानी का उपयोग भी हम केवल अपनी आवश्यकतानुसार ही करें। जहां तक संभव हो, वर्षा के जल को सहेजने के प्रबंध करें। प्लास्टिक कि थैलियों को अलविदा कहते हुए कपड़े या जूट के बने थैलों के उपयोग को बढ़ावा दें। बिजली बचाकर ऊर्जा संरक्षण में अपना अमूल्य योगदान दे। आज के डिजिटल युग में तमाम बिलों के ऑनलाइन भुगतान की ही व्यवस्था हो ताकि काग़ज़ की बचत की जा सके और कागज़ बनाने के लिए वृक्षों पर कम से कम कुल्हाड़ी चले।”   

यह पुस्तक पर्यावरण से सम्बंधित सभी जरूरी जानकारियाँ देने के साथ तमाम ज़रूरी पहलुओं पर प्रकाश डालती है। लेखक लिखते हैं "यह किताब बार-बार प्रभावी तरीके से यह समझाने की कोशिश करती है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए ज़रूरी है कि हम प्रकृति की मूक भाषा को समझें और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपना-अपना योगदान दें।”

श्री योगेश कुमार गोयल का लेखन बुनियादी सरोकारों का लेखन है। वे पर्यावरण संरक्षण विषय पर गहरी समझ रखते हैं। कुल मिलाकर यह कृति पर्यावरण प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों की गहन पड़ताल करती है। लेखक ने तथाकथित विकास और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से पर्यावरण ख़तरे के प्रति सचेत किया है। लेखक ने इस पुस्तक को लिखने में काफ़ी शोध और मेहनत की है। पुस्तक स्थाई महत्व की है। पुस्तक पठनीय ही नहीं, चिन्तन मनन करने योग्य, देश के कर्णधारों को दिशा देती हुई और क्रियान्वयन का आह्वान करती, छात्रों, शोधार्थियों, सामान्य नागरिकों के लिए सार्थक और उपयोगी कृति है। यह पुस्तक इतनी अधिक उपयोगी है कि इसे हमारे देश के हर शिक्षित व्यक्ति ने पढ़नी चाहिए। 

दीपक गिरकर
समीक्षक
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मोबाइल : 9425067036
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com


 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं