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भैयाजी के दौरे

भैयाजी बेस्ट बैंक में क्षेत्रीय प्रबंधक के पद पर कार्यरत थे। भैयाजी का व्यक्तित्व रौबीला था। वे हमेशा अपनी बड़ी-बड़ी मूछों पर हाथ घुमाते रहते थे। वे क्षेत्रीय कार्यालय में कम बैठते थे और शाखाओं का दौरा अधिक करते थे। भैयाजी जैसे ही किसी शाखा में पहुँचते थे, वहाँ के स्टाफ़ और शाखा प्रबंधक को डाँटना शुरू कर देते थे। स्टाफ़ को लगता था कि भैयाजी को दौरे पड़ते हैं। लेकिन ऐसा नहीं था। मैं भैयाजी को अच्छी तरह से जानता था क्योंकि मैं भैयाजी के क्षेत्रीय कार्यालय में ही डेस्क ऑफ़िसर था और मैं भैयाजी के हर शाखा दौरे में एक सहायक के रूप में उनके साथ ही रहता था। इतने अधिक दौरों के कारण भैयाजी अपने परिवार को समय नहीं दे पाते थे, जिससे कभी-कभी भैयाजी और उनके परिवार के सदस्यों के बीच में गरमा-गरम बहस छिड़ जाती थी। भैयाजी के परिवार के सदस्य यह मानने लगे थे कि अधिक दौरे करने की वजह से भैयाजी को दौरे पड़ने लगे हैं। 

भैयाजी के शाखा दौरे के बहुत सारे क़िस्से हैं। कभी-कभी मैं क्षेत्रीय कार्यालय में अपनी डेस्क पर अधिक काम की वजह से भैयाजी के साथ शाखा दौरे पर नहीं जा पाता था। एक बार भैयाजी अकेले ही एक क़स्बे में शाखा के दौरे पर चले गए। भैयाजी जब शाखा में पहुँचे तब लंच समय चल रहा था। अपनी आदत से लाचार भैयाजी ने स्टाफ़ को डाँटना शुरू कर दिया। स्टाफ़ का एक कर्मचारी भैयाजी के डाँटने की स्टाइल से समझ गया और अपने साथी कर्मचारियों से बोला—अरे ये तो बेस्ट बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक हैं। उस क़स्बे में बेस्ट बैंक की शाखा और ग्रेटर बैंक की शाखा पास-पास में थी। भैयाजी ग़लती से ग्रेटर बैंक की शाखा में ब्रांच विज़िट के लिए चले गए थे। 

उन दिनों क्षेत्रीय प्रबंधक को बैंक की गाड़ी और बैंक का ही ड्राइवर मिलता था। भैयाजी के ड्राइवर का नाम रामलाल था। भैयाजी रामलाल को भी डाँटते रहते थे। जब मैं भैयाजी के साथ दौरे पर नहीं जाता था तब रामलाल सुनसान रास्ते पर अचानक गाड़ी को रोककर गाड़ी ख़राब होने का नाटक करता था और भैयाजी से गाड़ी को धक्का लगवाता था। भैयाजी के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत तीन ज़िलों की शाखाएँ थीं। भैयाजी इन तीन ज़िलों के शहरों, क़स्बों और गाँवों की प्रसिद्ध खाने-पीने वाली जगहों से वाकिफ़ थें। भैयाजी ने जावरा क़स्बे में तीन माह पूर्व खुली नयी शाखा का दौरा किया। इस दौरे में मैं भी भैयाजी के साथ था। भैयाजी ने शाखा में पहुँचते ही शाखा प्रबंधक को डाँटना शुरू कर दिया और बोले, “तुम कुछ काम नहीं करते हो। तुमने एनपीए खातों में वसूली नहीं की है और तुम्हारी शाखा की वसूली का आँकड़ा शून्य है। मैं तुम्हारा स्थानांतरण कठिन जगह पर कर दूँगा, तब समझ में आएगा।”

मैं भैयाजी को शाखा प्रबंधक के केबिन से बाहर ले गया और उनसे धीरे से कहा, “सर, यह शाखा नयी है। अभी तो इस शाखा में लोन स्वीकृत होना अब प्रारम्भ हुए है।”

भैयाजी ने मुझ से कहा, “ठीक है, ठीक है।” वे फिर शाखा प्रबंधक को डाँटने लगे और पूछा कि गट्टू सेठ को जानते हो? शाखा प्रबंधक शिवपुरी साइड का था। उसने कहा, “नहीं।”

भैयाजी ने कहा, “तुमको किसने शाखा प्रबंधक बना दिया? तुम जावरा में गट्टू सेठ को नहीं जानते हो।”

भैयाजी ने रामलाल को बुलाया और कहा कि शाखा प्रबंधक को गट्टू सेठ की दुकान पर ले जाओ। रामलाल शाखा प्रबंधक को लेकर गट्टू सेठ की दुकान पर गया और वहाँ से शाखा में खाने के लिए रबड़ी और भैयाजी को साथ में ले जाने के लिए रबड़ी का डिब्बा और अन्य मिठाई के डिब्बे लेकर आया। भैयाजी को गट्टू सेठ की मिठाई बहुत पसंद थी। भैयाजी ने शाखा में रबड़ी खाई और एक डकार लेकर मुझ से बोले, “चलो अब कुछ नमकीन हो जाए। रतलाम ब्रांच विज़िट पर चलो।” 

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