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स्त्री जीवन के यथार्थ की प्रभावशाली अभिव्यक्ति  

     

पुस्तक: दिसम्बर संजोग (कहानी संग्रह) 
लेखिका: आभा श्रीवास्तव 
प्रकाशक: सन्मति पब्लिशर्स, बी-347, संजय विहार, मेंरठ रोड, हापुड़-245101        
आईएसबीएन नंबर: 978-93-9053-97-10
मूल्य: 160 रुपए

“दिसम्बर संजोग” आभा श्रीवास्तव का दूसरा कहानी संग्रह है। इनकी रचनाएँ निरंतर देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। यह संग्रह भी परिवार तथा समाज पर आधारित है। इस संग्रह में 10 कहानियाँ संगृहीत हैं। आभा श्रीवास्तव ने स्त्री विमर्श के विविध आयामों को “काली बकसिया” तथा “दिसम्बर संजोग” संग्रहों की कहानियों के माध्यम से सफलतापूर्वक हमारे सामने प्रस्तुत किया हैं। आभा श्रीवास्तव ने स्त्री पीड़ा को, उसकी इच्छाओं, आकांक्षाओं, भावनाओं और सपनों को अपनी कहानियों के माध्यम से चित्रित किया हैं। इस संग्रह की कहानियों में स्त्रियों के जीवन संघर्ष को और उनके सवालों को रेखांकित किया हैं। इन कहानियों में यथार्थवादी जीवन, पारिवारिक रिश्तों के बीच का ताना-बाना, दोगलापन, रिश्तों का स्वार्थ, रिश्तों का विद्रूप चेहरा, विवाहपूर्व प्रेम, विवाहपूर्व दैहिक सम्बन्ध, गिरती नैतिकता, अनैतिक सम्बन्ध, दहेज़ प्रथा, माता-पिता का तनाव, असंतुष्ट दाम्पत्य जीवन, मन की हीन ग्रंथियाँ, आर्थिक अभाव, पुरुष मानसिकता, सामंती व्यवस्था के अवशेष, पुरुषों के उदंड आचरण, स्त्री जीवन का कटु यथार्थ, विधवा की मार्मिक व्यथा, बेबसी, शोषण, उत्पीड़न, स्त्री संघर्ष, स्त्रीमन की पीड़ा, स्त्रियों की मनोदशा, नारी के मानसिक आक्रोश आदि का चित्रण मिलता है। संग्रह की सभी कहानियाँ मानवीय संवेदनाओं को चित्रित करती मर्मस्पर्शी, भावुक है। इस संग्रह की कहानियाँ ज़िन्दगी की हक़ीक़त से रूबरू करवाती हैं। लेखिका अपने आसपास के परिवेश से चरित्र खोजती है। कहानियों के प्रत्येक पात्र की अपनी चारित्रिक विशेषता है, अपना परिवेश है जिसे लेखिका ने सफलतापूर्वक निरूपित किया है। इन कहानियों में नारी को परिवार के बीच परखने का प्रयास किया गया है। आभा श्रीवास्तव की कहानियों में सिर्फ़ पात्र ही नहीं समूचा परिवेश पाठक से मुखरित होता है। 

संग्रह की पहली कहानी “आखर ढाई” नारी की संवेदनाओं को चित्रित करती एक मर्मस्पर्शी, भावुक कहानी है। यह घर की इकलौती संतान प्रिया बनर्जी की कहानी है जो अपने मामा के लड़के पंकज जो कि एक आर्मी ऑफ़िसर है, के प्यार में दीवानी होकर उससे शादी करती है, लेकिन पंकज को बेहिसाब शराब पीने की आदत लग जाती है। पंकज शादी के पूर्व भी कई लड़कियों से सम्बन्ध बना चुका था। शादी के बाद भी उसकी इस आदत में सुधार नहीं हुआ था। अपनी इस आदत के कारण वह एक दिन अपने जूनियर की नई नवेली पत्नी पर रेप की कोशिश करता है जिससे उसका कोर्टमार्शल होता है और उसे आर्मी की नौकरी से निकाल दिया जाता है। पंकज को नींद की गोलियाँ खाने की आदत थी। एक दिन प्रिया अपने पति पंकज को अधिक नींद की गोलियाँ खिला देती है जिससे पंकज की मृत्यु हो जाती है। फिर प्रिया अपनी पढ़ाई पूरी कर के यूनिवर्सिटी में लेक्चरार हो जाती है। यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हुए उसे अपने एक विद्यार्थी मीनकेतन मुखर्जी से प्यार हो जाता है। वह मीनकेतन मुखर्जी से शादी कर लेती है लेकिन मीनकेतन समलैंगिक और हार्ट का मरीज़ था। एक दिन प्रिया और मीनकेतन के बीच हुई हाथापाई के दौरान मीनकेतन की मृत्यु हो जाती है। फिर प्रिया नैनीताल के एक कान्वेंट स्कूल में नौकरी करती है जहाँ उसकी मुलाक़ात डॉक्टर शान्तनु सिन्हा से होती है। अब वह डॉक्टर सिन्हा से शादी करके अपने जीवन में आगे बढ़ेगी। कथाकार ने एक स्त्री के जीवन का कटु यथार्थ इस कहानी में रेखांकित किया है। शराबी पति के हाथों में पड़ने के बाद औरत की होने वाली दुर्दशा को कहानीकार ने स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त किया है। “निरुत्तर” एक मध्यम वर्गीय परिवार की कहानी है। यह रत्ना की कहानी है। रत्ना की शादी कम उम्र में तय कर दी जाती है। लेकिन रत्ना एक दूसरे लड़के से प्रेम करती है। रत्ना के ससुराल वाले लालची और दहेज़ लोभी हैं। रत्ना के पिताजी की आर्थिक हालत कमज़ोर है इसके बावजूद भी वे लड़के वालों की माँगें पूरी करने की कोशिश करते हैं। हल्दी के दिन रत्ना को बहुत तेज़ बुख़ार आता है और उसकी मृत्यु हो जाती है। उसकी मृत्यु के पश्चात रत्ना की माँ अपनी बहन जिया से कहती है—अच्छा हुआ जिया, रत्ना चली गयी। एक बोझ कम हुआ, ब्याह कर चली जाती, तो लड़के वालों को दहेज़ भरते-भरते हमारी कमर ही टूट जाती। इनकी मारुती बच गयी। शौक़ से चलाएँगे। रत्ना का दहेज़ रश्मि के काम आ जाएगा। सच कहूँ जिया, रत्ना के जाने के बाद पता नहीं कैसी तसल्ली महसूस हो रही है। (पृष्ठ 42) रत्ना के जीवन की कहानी मन को भिगोती है। कहानी में समाज का नग्न सच दिखलाई पड़ता है। 

“वे तीन” पुत्र लालसा के प्रति इस कहानी में सवालिया निशान लगाया गया है। इस कहानी में तीन बेटियों रमा, क्षमा, उमा के दर्द भरी ज़िन्दगी की अभिव्यक्ति हुई है। “उस रात की बात” एक डॉक्टर और उसकी पूर्व पत्नी की दिलचस्प कहानी है जिसमें डॉक्टर की पूर्व पत्नी प्रेतनी बन कर आती है। डॉक्टर ने अपनी पूर्व पत्नी की अस्थि को पूजा घर में रखा हुआ था जिसे डॉक्टर स्वयं भूल चुका था। लेकिन एक रात को जब घनघोर वर्षा हो रही होती है तब एक बूढ़ा व्यक्ति डॉक्टर को लेने आता है और उसे अपने बँगले पर ले जाता है। डॉक्टर रोगी को देखकर बेहोश हो जाता है क्योंकि रोगी उसकी मृत पत्नी रहती है। अगले दिन डॉक्टर अपने बैग को खोलता है तो उसमें उसकी मृत पत्नी द्वारा लिखी गयी एक चिट्ठी मिलती है जिसमें लिखा होता है—“तुमने शादी करके अच्छा किया है लेकिन मेरी अस्थियाँ विसर्जित करते समय तुमने मेरी अस्थि का एक टुकड़ा अपने पास छिपा लिया था। तुमने उसे पूजा स्थल में भगवान की तस्वीर के पीछे रख दिया था और तुम उसे भूल गए थे। बस इतनी कृपा करो मुझ पर कि उस अस्थि को विसर्जित कर दो नहीं तो मैं प्रेतनी बन कर न जाने कितने जन्मों तक भटकती रहूँगी। “पंखुरी पंखुरी हरसिंगार” कहानी का कैनवस बेहतरीन है। नारी संवेदना को अत्यन्त आत्मीयता एवं कलात्मक ढंग से चित्रित करती रोचक कहानी है जो पाठकों को काफ़ी प्रभावित करती है। यह दिव्या और उसके पति गौतम की कहानी है। गौतम दिव्या को प्रतिदिन अपमानित करता है। गौतम दिव्या को छोड़कर चला जाता है। दिव्या अपनी सास के सहयोग से अपने पैरों पर खड़ी होती है। दिव्या अपनी एक नयी पहचान बनाती है और शशांक से शादी करती है। अंत में गौतम एचआईवी का रोगी बन जाता है और जब वह दिव्या से मिलता है तो दिव्या उसे बाहर का रास्ता दिखाती है। कहानीकार ने एक पत्नी की छटपटाहट को स्वाभाविक रूप से रेखांकित किया है। 

“अलविदा अम्मा” कहानी में लेखिका अम्मा की कुटिल मानसिकता को नग्न करती है। कहानीकार ने शोभा की विवशता को दिखाकर स्त्री जीवन की नियति को दिखाया है। कहानी का सम्पूर्ण कथानक शोभा के इर्द-गिर्द घूमता है। लेखिका ने एक स्त्री के जीवन का कटु यथार्थ इन शब्दों में पिरोया है: लेकिन शोभा को क्या पता था कि वह एक नरक से निकल कर दूसरे नरक में जा गिरी है। शुरूआत के कुछ महीने तो इतने सुख में बीते कि शायद शोभा अपने भाग्य पर विश्वास ही न कर पा रही थी। सभी ने उसे हाथों हाथ ले रखा था। लेकिन 6 माह बीतते न बीतते सबके असली चेहरे सामने आने लगे। शोभा के मायके वाले अब कभी पलट कर उसकी ख़बर नहीं लेंगे, यह जान कर सभी की निगाहें बदलने लगीं। रमेश को कमाऊ बीवी क्या मिली उसे आरामतलबी का चस्का लग गया। देवर पहले से ही कुछ नहीं करता था। ससुर रिटायर हो चुके थे। ऐसे में शोभा से उम्मीद की जाती कि वह पूरी तनख़्वाह सास के हाथों सौंप दे। रमेश की ढिलाई से उसकी नौकरी भी छूट गई और शोभा के कंधों पर ससुराल की गृहस्थी का पूरा बोझ आ गया। (पृष्ठ 104) “कहो कल्याणी” कहानी में कल्याणी अपने विवाह के 6 महीने बाद ही विधवा हो जाती है। कल्याणी के ससुराल वाले चाहते हैं कि कल्याणी उससे दो साल छोटे देवर से शादी कर ले ताकि नौकरी और बीमे के पैसे ससुराल देवर को ही मिल जाएँ लेकिन कल्याणी अपने मायके आ जाती है और उसे अपने पति के दफ़्तर में ही अनुकम्पा नियुक्ति मिल जाती है। वह अपने पैरों पर खड़ी हो जाती है। कल्याणी नौकरी, घर के काम और अपनी पड़ोसन नंदिता भाभी की भी बहुत सहायता करती है। नंदिता भाभी का भाई अमोल नंदिता भाभी के घर आता है और वह शादी के लिए लड़की देखता है। लड़की अमिता भी सभी को पसंद आ जाती है लेकिन अमिता और किसी दूसरे लड़के को चाहती है और वह स्वयं शादी से मना कर देती है, तब अमोल कल्याणी से शादी करने का प्रस्ताव कल्याणी के समक्ष रखता है, कल्याणी अपना भूतकाल बताकर शादी के लिए हामी भर देती है।     

“समय, मौसम और उम्र” कहानी की कथावस्तु पुरुषप्रधान मानसिकता पर आधारित है। अच्युत मामा अपनी साँवली, मोटी पत्नी को छोड़कर एक कम उम्र की लड़की से शादी करते है लेकिन शादी के बाद जब आईने में अपनी शक्ल देखते हैं तो उनके चेहरे की रंगत बदलती चली गई और उन्होंने आईने को ही फोड़ डाला। “दिसम्बर संजोग” कहानी का कथानक और शीर्षक दोनों ही अद्भुत है। “दिसम्बर संजोग” आत्मकथात्मक शैली में लिखी, चंदर और यश्वी के अमर प्रेम की, मानवीय संवेदनाओं को चित्रित करती एक मर्मस्पर्शी, रोचक प्रेम कथा है। यह आत्मीय प्रेम की एक अनोखी कहानी है। कहानी की मुख्य किरदार यश्वी की संवेदनाओं को लेखिका ने जिस तरह से इस कहानी में संप्रेषित किया है वह क़ाबिलेतारीफ़ है। लेखिका ने परिवेश के अनुरूप भाषा और दृश्यों के साथ कथा को कुछ इस तरह बुना है कि कथा ख़ुद आँखों के आगे साकार होते चली जाती है। इस कहानी का कैनवस बेहतरीन है, जिसे पढ़ते हुए आप के मन में जिज्ञासा बनी रहती है कि कहानी का अंत क्या होगा। “उसके हिस्से का सुख” इस संग्रह की महत्त्वपूर्ण कहानी है। इस कहानी में शोभना भाभी को उसके हिस्से का सुख अंत में उस समय मिलता है जब उसकी बिटिया को नौकरी लग जाती है। 

कथाकार ने नारी जीवन के विविध पक्षों को अपने ही नज़रिए से देखा और उन्हें अपनी कहानियों में अभिव्यक्त भी किया हैं। आभा श्रीवास्तव ने मुखर होकर अपने समाज और अपने समय की सच्चाइयों का वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया हैं। कथाकार ने इन कहानियों में तथ्यों को प्रकट किया है। इन कहानियों में स्त्री जीवन के यथार्थ की प्रभावशाली अभिव्यक्ति हुई है। इन कहानियों में जीवन के विविध रंग हैं। कहानियों के पात्र अपनी ज़िन्दगी की अनुभूतियों को सरलता से व्यक्त करते हैं। ये कहानियाँ एक साथ कई पारिवारिक और सामाजिक परतों को उधेड़ती हैं। इस संग्रह की कहानियाँ जीवन और यथार्थ के हर पक्ष को उद्घाटित करने का प्रयास करती हैं। कहानियाँ लिखते समय लेखिका आभा श्रीवास्तव स्वयं उस दुनिया में रच-बस जाती है, यही उनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता है। सहज और स्पष्ट संवाद, घटनाओं, पात्रों और परिवेश का सजीव चित्रण इस संग्रह की कहानियों में दिखाई देता हैं। सभी कहानियाँ घटना प्रधान हैं। कहानी के पात्र हमारे आस-पास के परिवेश के लगते हैं। लेखिका ने परिवेश के अनुरूप भाषा और दृश्यों के साथ कथा को कुछ इस तरह बुना है कि कथा ख़ुद आँखों के आगे साकार होते चली जाती है। कथाकार ने समकालीन सच्चाइयों तथा परिवार में स्त्रियों की हालत को निष्पक्षता से प्रस्तुत किया है। आभा श्रीवास्तव की कहानियाँ पात्रों और परिवेश के माध्यम से आन्तरिक संवेदना को झकझोरती हैं। कहानी संग्रह रोचक है और अपने परिवेश से पाठकों को अंत तक बाँधे रखने में सक्षम है। संवेदना के धरातल पर ये कहानियाँ सशक्त हैं। आभा श्रीवास्तव की भाषा में आंचलिकता के साथ जीवंतता विद्यमान है। शीर्षक के नामकरण की दृष्टि से भी संग्रह की सभी कहानियाँ पूर्णतः सार्थक हैं। कथाकार ने स्त्री के अंतर्मन में उठती हर लहर को बहुत ही ख़ूबसूरती से अपनी कहानियों में उकेरा है। आभा श्रीवास्तव का कहानी संग्रह नारी के अस्मिता की तलाश की कहानियाँ है। आभा श्रीवास्तव ने अपने कथा साहित्य में स्त्री की दोयम दर्जे की स्थिति को बेहद संवेदनशील तरीक़े से रेखांकित किया हैं। ये कहानियाँ कथ्य और अभिव्यक्ति दोनोंं ही दृष्टियों से पाठकीय चेतना पर अमिट प्रभाव छोड़ती है। 

दीपक गिरकर
समीक्षक
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड, 
इंदौर-452016
मोबाइल: 9425067036
मेंलआईडी: deepakgirkar2016@gmail.com

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