पूर्वाभास
काव्य साहित्य | कविता लक्ष्मीनारायण गुप्ता7 Dec 2014
बंसीधर ने जब जब बंसी
कमर दुपट्टे बाँधी।
ग्वाले सजग सोचने लगते
आने को है आँधी।
गोपाला के भुजदण्डों की
मांस-पेशियाँ फड़कें।
अनन्त-बन्ध की गुर गठानें
चट चट करके चटकें।
श्री कृष्ण के मोर मुकुट का
मिर पंख लहराये।
दूरदृष्टि का वह वाहक
सबका धैर्य बँधाये।
कान्हा ने जब नाग कालिया
नाथा सबक सिखाया।
यमुना तट पर भीड़ का
उखड़ा मन हर्षाया।
आगे जब फिर कृष्ण-मुरा की
जम कर हुई लड़ाई
बंसी टूटी गिरी धरा पर
राधा ने खुशी मनायी।
मार असुर को गोपाला जब
नामित हुये मुरारी।
श्री कृष्ण के ओंठों चहकी
मुरली की स्वर लहरी।
राधा ने जलभुन कर कोसा
कहा कृष्ण को छलिया
लगी सोचने वह यमुना तट
कैसे हरूँ मुरलिया।
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