सँभलते हैं
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शिप्रा वर्मा6 Dec 2015
सँभलते हैं,
फिर चोट खाने के लिए!
उठते हैं,
फिर गिर जाने के लिए!
रोते हैं,
फिर मुस्कुराने के लिए!
चुप हैं,
फिर से गीत गाने के लिए!
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