चोट
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शिप्रा वर्मा6 Dec 2015
चोट खाने का हो तुम्हें
कितना भी अनुभव सही
बार बार यूँ चोट खाना
अच्छा तो लगता नहीं ।
वो तो ख़ुशनसीब था
जो देवदास ही हो गया
हर किसी की गति यही हो
यह ज़रूरी तो नहीं ।
ठीक है कि हादसे
और भी करते हैं बलवती
टूटा हुआ दिल पर किसी को
दीख सकता है नहीं ।
दुःख और सुख का आना जाना
मानते हैं सभी सही पर;
दुःख का आ कर जल्द न जाना
झेलना क्या कठिन नहीं!
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