समर्पित गीत
काव्य साहित्य | कविता प्रकाश चण्डालिया13 Mar 2009
मेरे व्यग्राकार चेहरे पर
तेरी सलोनी तन्द्रा
अधरों से
मनोरम गीत
आखिर क्यूँ गुनगुनाती है
मेरे लिए।
मैं गुंफन में पड़ा हूँ।
सादर-सस्नेह
तेरे अधरों पर
चाहता हूँ
क्यूँ मैं समर्पण करना
अपना गीत
फिर भी तेरे लिए।
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