शिद्दत सह नहीं सकते
शायरी | नज़्म आहद खान8 Oct 2017
शिद्दत सह नहीं सकते मर्ज़ ए भूल कर जाओ,
सुन ना सके किसे ऐसा मशग़ूल कर जाओ।
सोचता रहूँ तेरी हर मुलाक़ात को ऐसे,
हर लम्हे फ़ुरसत को ख़्वाब ए रूह कर जाओ।
तुम्हारी शान में तुम गुस्ताख़ी ना होने देना,
तड़प से बेनूर दिल को तुम बा नूर कर जाओ।
सुन लो मेरी जान क्या कहता है दर्द,
भूले भटके ही सही इसे दूर कर जाओ।
हमारी ख़ता ग़लत समझे तेरी निगाहों का मतलब,
तुम जैसे भी सही मुझे पुर सुकून कर जाओ।
महफ़िलों में हँसते है "आहद" आज भी खुलकर,
शायद तुम कल को हमें चाहने की भूल कर जाओ।
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