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शिशु गीत लेखन के संदर्भ में ’शिशु गीत सलिला’ - एक अध्ययन

शिशु गीत सलिला
संपादक : स्मृतिशेष कृष्ण शलभ
प्रकाशक : नीरजा स्मृति बाल साहित्य न्यास 
एल 167 - 168 पैरामाउंट ट्यूलिप, दिल्ली रोड़ - सहारनपुर 
पिन - 247001, उत्तरप्रदेश 
वितरक : मेधा बुक्स, एक्स - 11, नवीन शाहदरा दिल्ली 
पिन - 110032
पृष्ठ संख्या : 294 
मूल्य : 600 /-

शिशु गीत का लेखन बड़ा ही कठिन कार्य है। बहुत कम साहित्यकारों ने इस पर अपनी क़लम चलाई है। छोटी रचना, छोटे-छोटे वाक्य, आसान शब्द, लयात्मकता एक अच्छी शिशु गीत की पहचान है। इसकी लघुता ही एक प्रमुख विशेषता है।

एक बात और- बाल साहित्यकार के पास विषय वस्तु बहुत कम होते हैं। चूँकि, वह जो पर्यावरण में देखता है - वही बाल साहित्य के विषय वस्तु होते हैं।
बाल साहित्य न्यास के अध्यक्ष ओ.पी. गौड़ जी अपने दो शब्द में कहते हैं - "बाल साहित्य, हिन्दी साहित्य का एक अपरिहार्य अंग है। कहानी, नाटक, गीत, कविता जो भी इसकी विधाएँ हैं। उनमें से गीत एक ऐसी विधा है जो बाल-मन पर सबसे अधिक प्रभावकारी है। उसको बालक खेल-खेल में याद कर लेता है और गाता भी है। हिन्दी साहित्य में बाल गीत या बाल कविता का इतिहास अति पुराना है।"

सम्पादक स्मृतिशेष कृष्ण शलभ जी कहते हैं - "शिशु-काव्य, शिशुओं के लिए रचा गया काव्य है। शिशु गीत की आवश्यकता ठीक ऐसे है, जैसे अन्य अवस्था बचपन या बड़ों के लिए कविता की है। 

शीर्ष बाल साहित्यकार डॉ. श्रीप्रसाद जी अपना मत प्रकट करते हुये कहते हैं - "शिशु गीत का छंद-बंध प्रायः छोटा होता है। आवृति मूलक शब्दों का शिशु गीत बड़ा भी हो सकता है। इसके मूल में शिशु की धारण-क्षमता और बोध का सिद्धान्त है।" 

इससे स्पष्ट है कि शिशु गीत एक महत्वपूर्ण विधा है, जो किसी भी दृष्टिकोण से सरल नहीं है। इसे, शिशु के मनःस्थिति को ध्यान में रखकर बड़ी सावधानी व चिंतन पूर्वक रचा जाना चाहिए।

हिन्दी साहित्य जगत के मूर्धन्य साहित्यकारों ने भी स्तरीय शिशु गीतों की रचना की है। जिस क्रम में श्रीधर पाठक, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध', शेरजंग गर्ग, निरंकार देव सेवक, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, डॉ. श्रीप्रसाद, डॉ. राष्ट्रबन्धु, जय प्रकाश भारती, डॉ. भैरूंलाल गर्ग जी, प्रकाश मनु, रमेश तैलंग, दिविक रमेश आदि स्मरणीय हैं।

ऐसी कठिन विधा में रायगढ़ के चार बाल साहित्यकारों ने अपना नाम दर्ज किया है, जो एक गौरवमयी तथ्य है। यह भुलाया नहीं जा सकता कि कला और साहित्य की नगरी रायगढ़ में साहित्यकारों की एक लम्बी परंपरा रही है। बाल साहित्य के क्षेत्र में भी रायगढ़ ज़िला अग्रणी है। बहुप्रतिक्षित एवं चर्चित शिशु गीत संग्रह "शिशु गीत सलिला" जिसके सम्पादक स्मृतिशेष कृष्ण शलभ जी हैं। उक्त ग्रन्थ में देश भर के 207 पुराने एवं आज के दौर के समर्थ बाल साहित्यकारों के प्रतिनिधि शिशु गीत संग्रहित हैं। छत्तीसगढ़ के भी पाँच बाल साहित्यकार इसमें जगमगा रहे हैं। स्मृतिशेष नारायण लाल परमार, शंभूलाल शर्मा 'वसंत', देवेन्द्र कुमार शर्मा 'पुष्प', उमाशंकर 'मनमौजी' और युवा बाल साहित्यकार प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'। 

यदि हम उपरोक्त कवियों में से कृतिशेष नारायण लाल परमार जी को छोड़कर, शेष चार बाल साहित्यकारों की चर्चा करें तो सभी रायगढ़ ज़िले से हैं, जिन्होंने बाल साहित्य के क्षेत्र में अखिल भारतीय स्तर पर अपना परचम फहराया है। चलिये जानते हैं उन चारों के बारे में -

शंभूलाल शर्मा 'वसंत' करमागढ़ -रायगढ़ निवासी, प्रख्यात बाल साहित्यकार, छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक प्रकाशित एवं प्रसारित किये जाने वाले- बाल रचनाकार हैं, जो अपनी सादगी, सरलता व विनम्रता के लिये जाने जाते हैं। उक्त प्रतिष्ठापूर्ण संकलन में उनका एक शिशु गीत देखिये ...

सूरज दादा ठीक बताना,
कब से हो बीमार।
तेज़ बुखार चढ़ा है तुमको,
कुछ तो करो विचार॥
ठीक नहीं है इस हालत में,
करना कुछ भी काम।
कम से कम दोपहरी में तो,
करो आप आराम॥

इस शिशु गीत के परिपेक्ष में "हिन्दी बाल कविता का इतिहास" में प्रकाश मनु जी लिखते हैं - "सूरज की गर्मी से सारा संसार घबराता है और दोपहर में तो उनका पारा ज़्यादा ही चढ़ जाता है। शंभूलाल शर्मा ’वसंत’ (ज.1948 गोर्रा गाँव, रायगढ़ ) उन्हें जल्दी से अपना इलाज करवा लेने की सलाह देते हैं। इस तरह से 'वसंत' जी के शिशु गीत सरल, सरस, चटपटा और बाल मन के अनुरूप होते हैं।" 

देवेंद्र कुमार शर्मा 'पुष्प' करमागढ़ - रायगढ़ निवासी, श्री शंभूलाल शर्मा 'वसंत' के अनुज हैं। जो अपने अग्रज के पद चिन्हों पर चलते हुये बड़े और नन्हे-मुन्नों के लिये समान गति से लेखन कार्य में सक्रिय हैं। उनका एक बाल गीत संग्रह "आना चंदा हौले - हौले " भी प्रकाशित हुआ है। उनका भी एक शिशु गीत देखिये कितना आनंद दायक है -

मैं तो हूँ कठपुतली रानी।
बड़े-बड़े वीरों की नानी॥
मेरी घोड़ी का क्या कहना।
चेतक की ये छोटी बहना॥
दुश्मन मुझे देख घबराते,
मेरे चाबुक से डर जाते॥

उमाशंकर 'मनमौजी' दरोगापारा -रायगढ़ निवासी, जिन्होंने पुलिस विभाग में सेवा देते हुये -हास्य कवि के रूप में ख्याति अर्जित की है। कवि सम्मेलनों में भी उनकी हास्य रचनाएँ धूम मचा देती हैं। वे भी छात्र जीवन से ही लेखन कार्य में सक्रिय हैं एवं राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में भी छपते रहते हैं। बच्चों के लिये भी ख़ूब लिखते हैं तथा बाल पत्र-पत्रिकाओं में खूब छपते हैं। इस संकलन में उनका एक शिशु गीत देखिये कितना मज़ेदार है-

हाथी हल्लम-हल्लम पहुँचा।
बंदर टेलर शॉप॥
पाजामा-कुरता सिलवाना।
ले लो मेरा नाप॥
बंदर हाथ जोड़कर बोला।
सुनिए एलीफैंट॥
उस टेलर पर जाओ।
जो सिलता सर्कस का टैंट॥

तमनार -पड़िगाँव निवासी प्रमोद सोनवानी 'पुष्प', 'वसंत'जी के प्रिय शिष्य हैं। छात्र जीवन से ही अपने गुरु जी की पुस्तकों को पढ़ना तथा उनके बाल गीतों को लय, राग के साथ गुनगुनाना उनकी आदत में शुमार है। छात्र जीवन से ही बाल गीत लिख रहे हैं। शुरू-शुरू में दैनिक समाचार पत्रों के बाल अंक में उनकी छुटपुट रचनाएँ छपती थीं। वर्तमान में उनके बाल गीत राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में छप रहे हैं। 'वसंत' जी की भाँति उनकी रचनाएँ सरल, सरस एवं चटपटी होती हैं। क्यों न हों ....! गुरु की छाप तो शिष्य पर पड़नी ही पड़नी है। उनका एक दिलचस्प शिशु गीत देखिये ....

देखो - देखो हाथी आया।
लंबा सूँड़ हिलाते आया॥
फूल-पत्तियाँ तोड़-ताड़ कर।
मन अपना बहलाने आया॥
डुबकी ख़ूब लगा नदिया में।
वह तो रंग जमाने आया॥

उपरोक्त विवेचना से यह निष्कर्ष निकलता है कि - बाल काव्य की प्रारंभिक विधा शिशु गीत एवं शिशु कविता स्वर - लय में बँधे सुन्दर, स्वस्थ एवं मनोरंजक शिशु गीतों की यात्रा अविराम रूप से एक सुनिश्चित लक्ष्य की ओर निरंतर गतिमान है। जो एक सुखद सूचक है।

प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
तमनार/पड़िगाँव - रायगढ़
(छ.ग.) पिन 496107

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