सिक्स्थ सेन्स
काव्य साहित्य | कविता सरस दरबारी14 Apr 2014
स्पर्श –
अहसासों से भरा वह शब्द
जो रिश्तों की उँगली पकड़
ख़ुद अपनी पहचान बनाता है . . .
– हर रिश्ते का अपना अनुभव –
जहाँ पिता का आश्वस्त करता स्पर्श –
अपूर्व विश्वास भर जाता है–
वहीं भ्राता का रक्षा भरा स्पर्श,
भयमुक्त कर जाता है –
पति या प्रेमी का सिहरन भरा स्पर्श –
असंख्य सितारों की मादकता भर जाता है –
तो वहीं भीड़ की आड़ लेते
लिजलिजे अजनबिओं का घिनौना,
और अनचाहे रिश्तेदारों का मौक़ा-परस्त स्पर्श –
शरीर पर लाखों छिपकलिओं की रेंगन भर जाता है –
– सभी स्पर्श !
लेकिन कितने भिन्न!
और इनकी सही पहचान –
ही हमारा सुरक्षा कवच है . . .
हमारी "सिक्स्थ सेन्स"!
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