स्टेयरिंग थामती उँगलियाँ
काव्य साहित्य | कविता डॉ. विनय ‘विश्वास’2 Jul 2014
हौसले की आँच से
संकोच के पहाड़ गला रही थी
साधारण-सी थी वो लड़की जो
कार चला रही थी
मैंने देखा-
कुण्ठाओं ने इसे सदियों चलाया है
और समय का स्टेयरिंग
एक अरसे बाद
अब इसके हाथों में आया है
न कोई कसम न कोई वास्ता
अपने पाँव
अपना रास्ता
अपनी हार है अपनी जीत
स्टेयरिंग थामती इसकी उँगलियाँ हैं ये
या बाँसुरी के शून्यों में सुर भरता
संगीत
आईना देखते पीढ़ियाँ गुज़र गईं
... अब इसने ख़ुद को पहचाना है
इन हाथों से स्टेयरिंग नहीं छूटने वाला
इसे तो जहाँ पहुँचना है
उससे भी आगे जाना है!
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