सुनील ’शाश्वत’ मुक्तक - 1
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक सुनिल यादव 'शाश्वत’15 Jan 2020 (अंक: 148, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
1.
"मैं कवि नया नहीं हूँ,
नभ का रवि भी बहुत पुराना है,
बस यूँ ही ख़ामोश हूँ,
सत्ताधीशों के पास माना-जाना थाना है।"
2
"ये वो जयचंद विनाशक हैं,
इन सा कोई मासूम कहीं?
जिन्हें तराइन का ही याद रहा,
चंद्रावर की परवाह नहीं।"
3.
वो विद्वान थे सो फरमाया,
'देशभक्तों का सैनिक होना जरूरी है!’
मैं इक नादान, प्रतिकार किया,
'बेरोज़गारों का देशभक्त होना अधिक ज़रूरी है!'
4.
मधु में भीगी सुरमयी तान पर,
इठला कर मत बैठ बबूल की डाल पर,
पग तेरी तरह औरों के भी कोमल हैं,
मत बन कंटक किसी की राह पर।
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